Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapati Sutra Part 04 Stahanakvasi
Author(s): Madhukarmuni
Publisher: Agam Prakashan Samiti
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सोलसमे सन्निपंचिंदियमहाजुम्मसए: एक्कारस उद्देसगा
सोलहवाँ संज्ञीपंचेन्द्रियमहायुग्मशतक : ग्यारह उद्देशक
१. कण्हलेस्सअभवसिद्धियकडजुम्मकडजुम्मसन्निपंचेंदिया णं भंते ! कओ उववज्जंति ? ० जहा एएसिं चेव ओहियसतं तहा कण्हलेस्ससयं वि, नवरं तेणं भंते ! जीव कण्हलेस्सा ? 'हंता कण्हलेस्सा।' ठिती, संचिट्ठणा य जहा कण्हलेस्स सए । सेसं तं चेव । सेवं भंते! सेवं भंते ! ति० ॥ ४० ॥ १६ ॥ १-११॥
चत्तालीसइमे सते : सोलसमं सतं समत्तं ॥ ४०-१६॥
[१ प्र.] भगवन् ! कृष्णलेश्यी- अभवसिद्धिक- कृतयुग्म- कृतयुग्मराशियुक्त संज्ञीपंचेन्द्रिय जीव कहाँ से आकर उत्पन्न होते हैं ? इत्यादि प्रश्न ।
[१ उ.] गौतम ! जिस प्रकार इनका औधिक शतक है, उसी प्रकार कृष्णलेश्या - शतक जानना चाहिए। विशेष—
[प्र.] भगवन् ! वे जीव कृष्णलेश्या वाले हैं ?
[उ. ] 'हाँ, गौतम ! वे कृष्णलेश्या वाले हैं।' इनकी स्थिति और संचिट्ठणाकाल कृष्णलेश्याशतक में उक्त कथन के समान है। शेष पूर्ववत् है ।
'भगवन् ! यह इसी प्रकार है, भगवन् ! यह इसी प्रकार है', यों कह कर गौतमस्वामी यावत् विचरते हैं । ।। ४० । १६ । १ - ११॥
॥ चालीसवाँ शतक : सोलहवाँ अवान्तरशतक समाप्त ॥