Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapati Sutra Part 04 Stahanakvasi
Author(s): Madhukarmuni
Publisher: Agam Prakashan Samiti

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Page 869
________________ ७३८] चउत्थो उद्देसओ:चतुर्थ उद्देशक राशियुग्म-कल्योजराशिरूप चौवीस दण्डकों में उपपातादि प्ररूपणा १. रासीजुम्मकलियोगनेरयिया णं भंते ! कओ उववजंति ? एवं चेव, नवरं परिमाणं एक्को वा, पंच वा, नव वा, तेरस वा, संखेजा वा, असंखेजा वा० । [१ प्र.] भगवन् ! राशियुग्म-कल्योजराशि नैरयिक कहाँ से आकर उत्पन्न होते हैं ? [१ उ.] गौतम ! सब कथन पूर्ववत् है। विशेष इनका परिमाण—ये एक, पांच, नौ, तेरह, संख्यात या असंख्यात उत्पन्न होते हैं। २.[१] ते णं भंते ! जीवा जं समयं कलियोगा तं समयं कडजुम्मा, जं समयं कडजुम्मा तं समयं कलियोगा? नो इणढे समढे। [२-१ प्र.] भगवन् ! वे जीव जिस समय कल्योज होते हैं, क्या उस समय कृतयुग्म होते हैं अथवा जिस समय कृतयुग्म होते हैं, क्या उस समय कल्योज होते हैं ? [२-१ उ.] गौतम ! यह अर्थ समर्थ नहीं है। [२] एवं तेयोयेण वि समं। [२-२] इसी प्रकार त्र्योज के साथ कृतयुग्मादि-सम्बन्धी कथन भी जानना चाहिए। [३] एवं दावरजुम्मेण वि समं। [२-३] द्वापरयुग्म के साथ कृतयुग्मादि-सम्बन्धी कथन भी इसी प्रकार समझना चाहिए। ३. सेसं जहा पढमुद्देसए जाव वेमाणिया। सेवं भंते ! सेवं भंते ! त्ति०।। ॥इकचत्तालीसइमे सए : चउत्थो उद्देसओ समत्तो॥ [३] शेष सब वर्णन प्रथम उद्देशक के समान वैमानिक पर्यन्त जानना चाहिए। 'हे भगवन् ! यह इसी प्रकार है', इत्यादि पूर्ववत् । विवेचन–राशियुग्म-कल्योजराशिरूप जीवों की उत्पत्ति आदि का कथन—प्रस्तुत ३ सूत्रों में राशियुग्म एवं कल्योजरूप जीवों का उत्पत्ति-सम्बन्धी अतिदेशपूर्वक कथन किया गया है। ॥ इकतालीसवां शतक : चतुर्थ उद्देशक समाप्त॥ ***

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