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________________ [ ७२५ सोलसमे सन्निपंचिंदियमहाजुम्मसए: एक्कारस उद्देसगा सोलहवाँ संज्ञीपंचेन्द्रियमहायुग्मशतक : ग्यारह उद्देशक १. कण्हलेस्सअभवसिद्धियकडजुम्मकडजुम्मसन्निपंचेंदिया णं भंते ! कओ उववज्जंति ? ० जहा एएसिं चेव ओहियसतं तहा कण्हलेस्ससयं वि, नवरं तेणं भंते ! जीव कण्हलेस्सा ? 'हंता कण्हलेस्सा।' ठिती, संचिट्ठणा य जहा कण्हलेस्स सए । सेसं तं चेव । सेवं भंते! सेवं भंते ! ति० ॥ ४० ॥ १६ ॥ १-११॥ चत्तालीसइमे सते : सोलसमं सतं समत्तं ॥ ४०-१६॥ [१ प्र.] भगवन् ! कृष्णलेश्यी- अभवसिद्धिक- कृतयुग्म- कृतयुग्मराशियुक्त संज्ञीपंचेन्द्रिय जीव कहाँ से आकर उत्पन्न होते हैं ? इत्यादि प्रश्न । [१ उ.] गौतम ! जिस प्रकार इनका औधिक शतक है, उसी प्रकार कृष्णलेश्या - शतक जानना चाहिए। विशेष— [प्र.] भगवन् ! वे जीव कृष्णलेश्या वाले हैं ? [उ. ] 'हाँ, गौतम ! वे कृष्णलेश्या वाले हैं।' इनकी स्थिति और संचिट्ठणाकाल कृष्णलेश्याशतक में उक्त कथन के समान है। शेष पूर्ववत् है । 'भगवन् ! यह इसी प्रकार है, भगवन् ! यह इसी प्रकार है', यों कह कर गौतमस्वामी यावत् विचरते हैं । ।। ४० । १६ । १ - ११॥ ॥ चालीसवाँ शतक : सोलहवाँ अवान्तरशतक समाप्त ॥
SR No.003445
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapati Sutra Part 04 Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1986
Total Pages914
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Metaphysics, & agam_bhagwati
File Size17 MB
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