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[व्याख्याप्रज्ञप्तिसूत्र गोयमा ! चत्तारि वा, अट्ठ वा, बारस वा, सोलस वा, संखेजा वा, असंखेज्जा वा उववजंति। [३ प्र.] भगवन् ! वे (पूर्वोक्त विशेषणविशिष्ट) जीव एक समय में कितने उत्पन्न होते हैं ? [३ उ.] गौतम ! वे एक समय में चार, आठ, बारह, सोलह, संख्यात या असंख्यात उत्पन्न होते हैं। ४. ते णं भंते ! जीवा किं संतरं उववजंति, निरंतरं उववज्जति ?
गोयमा ! संतरं पि उववजति, निरंतरं पि उववज्जति। संतरं उववज्जमाणा जहन्नेणं एक्कं समयं, उक्कोसेणं असंखेजे समये अंतरं कटु उववज्जति; निरंतरं उववजमाणा जहन्नेणं दो समया, उक्कोसेणं असंखेजा समया अणुसमयं अविरहिंय निरंतरं उववज्जति।
[४ प्र.] भगवन् ! वे जीव सान्तर उत्पन्न होते हैं या निरन्तर ?
[४ उ.] गौतम ! वे जीव सान्तर भी उत्पन्न होते हैं और निरन्तर भी। जो सान्तर उत्पन्न होते हैं, वे जघन्य एक समय और उत्कृष्ट संख्यात समय का अन्तर करके उत्पन्न होते हैं। जो निरन्तर उत्पन्न होते हैं, वे जघन्य दो समय और उत्कृष्ट असंख्यात समय तक निरन्तर प्रतिसमय अविरहितरूप से उत्पन्न होते हैं।
५. [१] ते णं भंते ! जीवा जं समयं कडजुम्मा तं समयं तेयोगा, जं समयं तेयोगा तं समयं कडजुम्मा ?
णो इणढे समढे।
[५-१ प्र.] भगवन् ! वे जीव जिस समय कृतयुग्मराशिरूप होते हैं, क्या उसी समय त्र्योजराशिरूप होते हैं और जिस समय त्र्योजराशियुक्त होते हैं, उसी समय कृतयुग्मराशि रूप होते हैं ?
[५-१ उ.] गौतम ! यह अर्थ समर्थ नहीं। [२] जं समयं कडजुम्मा तं समयं दावरजुम्मा, जं समयं दावरजुम्मा तं समयं कडजुम्मा ? णो इणढे समढे।
[५-२ प्र.] भगवन् ! जिस समय वे जीव कृतयुग्मरूप होते हैं, क्या उस समय द्वारपयुग्मरूप होते हैं तथा जिस समय वे द्वापरयुग्मरूप होते हैं, उसी समय कृतयुग्मरूप होते हैं ?
[५-२ उ.] गौतम ! यह अर्थ समर्थ नहीं है। [३] जं समयं कडजुम्मा तं समय कलियोगा, जं समयं कलियोगा तं समयं कडजुम्मा ? णो इणढे सम?।
[५-३ प्र.] भगवन् ! जिस समय वे कृतयुग्म होते हैं, क्या उस समय कल्योज होते हैं, तथा जिस समय . कल्योज होते हैं, उस समय कृतयुग्मराशि होते हैं ?
[५-३ उ.] गौतम! यह अर्थ समर्थ (शक्य) नहीं है। ६. ते णं भंते ! जीवा कहं उववजंति ?