Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapati Sutra Part 04 Stahanakvasi
Author(s): Madhukarmuni
Publisher: Agam Prakashan Samiti
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[व्याख्याप्रज्ञप्तिसूत्र [१११] सवेदी से लेकर नपुंसकवेदी जीवों तक का कथन सलेश्य जीवों के सदृश है। ११२. अवेयगा जहा सम्मट्ठिी। [११२] अवेदी जीवों का कथन सम्यग्दृष्टि के समान है। ११३. सकसायी जाव लोभकसायी जहा सलेस्सा। [११३] सकषायी यावत् लोभकषायी, सलेश्य जीवों के समान जानना। ११४. अकसायी जहा सम्मट्ठिी। [११४] अकषायी जीव सम्यग्दृष्टि के समान जानना। ११५. सजोगी जाव कायजोगी जहा सलेस्सा। [११५] सयोगी यावत् काययोगी जीव सलेश्यी के समान है। ११६. अजोगी जहा सम्मट्टिी। [११६] अयोगी जीव सम्यग्दृष्टि के सदृश हैं। ११७. सागारोवउत्ता अणागारोवउत्ता जहा सलेस्सा। [११७] साकारोपयुक्त और अनाकारोपयुक्त जीव सलेश्य जीवों के सदृश जानना। ११८. एवं नेरतिया वि भाणियव्वा, नवरं नायव्वं जं अत्थि। [११८] इसी प्रकार नैरयिकों के विषय में कहना चाहिए, किन्तु उनमें जो बोल पाये जाते हों, वह कहने चाहिए। ११९. एवं असुरकुमारा वि जाव थणियकुमारा। [११९] इसी प्रकार असुरकुमारों से लेकर स्तनितकुमारों तक के विषय में जानना चाहिए।
१२०. पुढविकाइया सव्वट्ठाणेसु वि मज्झिल्लेसु दोसु वि समोसरणेसु भवसिद्धीया वि, अभवसिद्धीया वि।
[१२०] पृथ्वीकायिक जीव सभी स्थानों में मध्य के दोनों समवसरणों (अक्रियावादी और अज्ञानवादी) में भवसिद्धिक भी होते हैं और अभवसिद्धिक भी होते हैं।
१२१. एवं जाव वणस्सतिकाइय त्ति। [१२१] इसी प्रकार वनस्पतिकायिक पर्यन्त जानना चाहिए।
१२२. बेइंदिय-तेइंदिय-चतुरिदिया एवं चेव, नवरं सम्मत्ते, ओहिए नाणे, आभिणिबोहिएनाणे, सुयनाणे, एएसु चेव दोसु मज्झिमेसु समोसरणेसु भवसिद्धीया, नो अभवसिद्धीया, सेसं तं चेव।
[१२२] द्वीन्द्रिय, त्रीन्द्रिय और चतुरिन्द्रिय जीवों के विषय में भी इसी प्रकार जानना चाहिए। विशेष यह है कि सम्यक्त्व, औधिक ज्ञान, आभिनिबोधिकज्ञान और श्रुतज्ञान, इनके मध्य के दो समवसरणों (अक्रियावादी