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पैंतीसवां शतक : उद्देशक-१]
[६८५ एकेन्द्रिय तो अनन्त उत्पन्न होते हैं। उनमें से निकल कर वे विजातीयकाय में उत्पन्न हों और पुनः एकेन्द्रिय में उत्पन्न हों तब उनका संवेध हो सकता है किन्तु वहाँ से उनका निकलना असम्भव होने से संवेध नहीं हो सकता। यहाँ जो सोलह कतयग्म-कतयग्मराशिरूप उत्पाद कहा है, वह त्रसकाय से आकर उत्पन्न होने वाले जीव की अपेक्षा से है, वह वास्तविक उत्पाद नहीं है, क्योंकि एकेन्द्रिय में प्रतिसमय अनन्त जीवों का उत्पाद होता है। इसलिए यहाँ एकेन्द्रिय की अपेक्षा से संवेध असम्भावित होने से उसका निषेध किया गया है। कृतयुग्म-त्र्योज-एकेन्द्रिय से लेकर कल्योज-कल्योज-एकेन्द्रिय तक का उत्पादादि निरूपण
१५. कडजुम्मतेयोएगिंदिया णं भंते ! कओ उववजंति०? उववातो तहेव। [१५ प्र.] भगवन् ! कृतयुग्म-त्र्योजराशिरूप एकेन्द्रिय जीव कहाँ से आकर उत्पन्न होते हैं ?
[१५ उ.] गौतम ! उनका उपपात पूर्ववत् कहना चाहिए। . १६. ते णं भंते ! जीवा एगसमए० पुच्छा।
गोयमा ! एक्कूणवीसा वा, संखेजा वा, असंखेजा वा, अणंता वा उववजंति। सेसं जहा कडजुम्मकडजुम्माणं (सु० ४-१४) जाव अणंतखुत्तो।
[१६ प्र.] भगवन् ! वे जीव एक समय में कितने उत्पन्न होते हैं ?
[१६ उ.] गौतम ! वे एक समय में उन्नीस, संख्यात असंख्यात या अनन्त उत्पन्न होते हैं। शेष पूर्ववत् कृतयुग्म-कृतयुग्मराशिरूप के पाठ (सू. ४ से १४ तक) के अनुसार पहले अनेक बार अथवा अनन्त बार उत्पन्न हुए हैं, यहाँ तक कहना चाहिए।
१.७. कडजुम्मदावरजुम्मएगिंदिया णं.भंते ! कओहिंतो उववजति ? उववातो तहेव। [१७ प्र.] भगवन् ! कृतयुग्म-द्वापरयुग्मरूप एकेन्द्रिय जीव कहाँ से आकर उत्पन्न होते हैं ? इत्यादि
प्रश्न।
[१७ उ.] गौतम ! इनका उपपात पूर्ववत् जानना चाहिए। १८. ते णं भंते ! एगसमएणं पुच्छा।
गोयम्मा ! अट्ठारस वा, संखेजा वा, असंखेजा वा, अणंता वा उववजंति। सेसं तहेव (सु० ४१४) जाव अणंतखुत्तो। .
[१८ प्र.] भगवन् ! वे (पूर्वोक्त एकेन्द्रिय) जीव एक समय में कितने उत्पन्न होते हैं ? .
१. भगवती. अ. वृत्ति, पत्र ९६७