Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapati Sutra Part 04 Stahanakvasi
Author(s): Madhukarmuni
Publisher: Agam Prakashan Samiti

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Page 827
________________ ६९६] तइए एगिदियमहाजुम्मसए : पढमाइ-एक्कारसपज्जंता उद्देसगा तृतीय एकेन्द्रियमहायुग्मशतक : पहले से ग्यारहवें उद्देशक पर्यन्त कृष्णलेश्याविशिष्टशतक के अतिदेशपूर्वक नीललेश्याशतक-प्ररूपणा १. एवं नीललेस्सेहि वि कण्हलेस्ससयसरिसं, एक्कारस उद्देसगा तहेव। सेवं भंते ! सेवं भंते ! ति० ॥ ३५।३।१-११॥ ॥ पंचतीसइमे सए : ततियं एगिदियमहाजुम्मसयं समत्तं ॥ ३५-३॥ [१] नीललेश्या वाले एकेन्द्रियों का शतक भी कृष्णलेश्या वाले एकेन्द्रियों के शतक के समान कहना चाहिए। इसके भी ग्यारह उद्देशकों का कथन उसी प्रकार है। 'हे भगवन् ! यह इसी प्रकार है, भगवन् ! यह इसी प्रकार है', यों कह कर गौतमस्वामी यावत् विचरते हैं। ॥ तृतीय एकेन्द्रियमहायुग्मशतक : पहले से ग्यारहवें उद्देशक तक समाप्त॥ ॥ पैंतीसवां शतक : तृतीय एकेन्द्रियमहायुग्मशतक सम्पूर्ण। *** चउत्थे एगिंदियमहाजुम्मसए : पढमाइ-एक्कारसपजंता उद्देसगा चतुर्थ एकेन्द्रियमहायुग्मशतक : पहले से ग्यारहवें उद्देशक पर्यन्त द्वितीय एकेन्द्रियमहायुग्मशतकानुसार चतुर्थ एकेन्द्रियमहायुग्मशतक का निर्देश १. एवं काउलेस्सेहि वि सयं कण्हलेस्ससयसरिसं। सेवं भंते ! सेवं भंते !० ॥ ३५॥ ४।१-११॥ ॥ पंचतीसइमे सए : चउत्थं एगिंदियमहाजुम्मसयं समत्तं ॥ ३५-४॥ [१] इसी प्रकार कापोतलेश्या-सम्बन्धी शतक भी कृष्णलेश्याविशिष्ट शतक के समान जानना चाहिए। 'हे भगवन् ! यह इसी प्रकार है, भगवन् ! यह इसी प्रकार है', यों कह कर गौतमस्वामी यावत् विचरते हैं। ३५ । ४।१-११॥ ॥ चतुर्थ एकेन्द्रियमहायुग्मशतक : पहले से ग्यारहवें उद्देशक तक समाप्त॥ ॥ पैंतीसवाँ शतक : चतुर्थ एकेन्द्रियमहायुग्मशतक सम्पूर्ण॥ ***

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