Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapati Sutra Part 04 Stahanakvasi
Author(s): Madhukarmuni
Publisher: Agam Prakashan Samiti
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पंचमाइअट्ठमपजंतेसुबेइंदियमहाजुम्मसएसुः
पढमा एक्कारसपज्जंता उद्देसगा पाँचवें से आठवें द्वीन्द्रियमहायुग्मशतक पर्यन्त : पहले से ग्यारहवें उद्देशक तक पाँचवें से आठवें शतक तक एकेन्द्रियमहायुग्मशतकानुसार निर्देश
१. भवसिद्धियकडजुम्मकडजुम्मबेइंदिया णं भंते ! ०? एवं भवसिद्धियसया वि चत्तारि तेणेव पुव्वगमएणं नेतव्वा, नवरं 'सव्वपाणा०'। णो इणढे समढे।' सेसं जहेव ओहियसयाणि चत्तारि। सेवं भंते ! सेवं भंते ! त्ति०।
[॥३६-५-८॥]
॥ छत्तीसतिमे सए : अट्ठमं सयं समत्तं ॥ ३६-८॥ [१ प्र.] भगवन् ! भवसिद्धिक कृतयुग्म-कृतयुग्मराशिप्रमाण द्वीन्द्रिय जीव कहाँ से आकर उत्पन्न होते
[१ उ.] गौतम ! पूर्वोक्त पाठ के अनुसार भवसिद्धिक महायुग्मद्वीन्द्रिय जीवों के चार शतक जानने चाहिए। विशेष यह है कि
[प्रश्न] सर्व प्राण, भूत, जीव और सत्त्व यावत् अनन्त बार उत्पन्न हुए ? [उत्तर] यह बात शक्य नहीं है। शेष सब पूर्ववत् जानना चाहिए। ये चार औधिकशतक हुए। 'हे भगवन् ! यह इसी प्रकार है, भगवन् ! यह इसी प्रकार है', यों कह कर गौतमस्वामी यावत् विचरते
॥ छत्तीसवाँ शतक : पांचवें से आठवें शतक पर्यन्त समाप्त॥
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