Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapati Sutra Part 04 Stahanakvasi
Author(s): Madhukarmuni
Publisher: Agam Prakashan Samiti
View full book text
________________
चालीसवां शतक : उद्देशक-२]
[७१७ [२ उ.] गौतम! इनकी वक्तव्यता प्रथमसमयोत्पन्न संज्ञीपंचेन्द्रियों के उद्देशक के अनुसार जाननी चाहिए। विशेष यह है कि
[प्र.] भगवन् ! क्या वे जीव कृष्णलेश्या वाले हैं ? [उ.] हाँ, गौतम! वे कृष्णलेश्या वाले हैं। शेष पूर्ववत् । इसी प्रकार सोलह ही युग्मों में कहना चाहिए। 'हे भगवन् ! यह इसी प्रकार है', इत्यादि पूर्ववत्।
३. एवं एए वि एक्कारस उद्देसगा कण्हलेस्ससए। पढम-ततिय-पंचमा सरिसगमा। सेसा अट्ठ वि सरिसगमा। सेवं भंते ! सेवं भंते ! त्ति० ॥४०।२।३-११॥
॥चत्तालीसइमे सए : बितियं सयं समत्तं॥ ४०-२॥ . [३] इस प्रकार इस कृष्णलेश्याशतक में ग्यारह उद्देशक हैं। प्रथम, तृतीय और पंचम, ये तीनों उद्देशक एक समान हैं। शेष आठ उद्देशक एक समान हैं।
___ हे भगवन् ! यह इसी प्रकार है, भगवन् ! यह इसी प्रकार है', यों कह कर गौतमस्वामी यावत् विचरते हैं ॥ ४०।२।३-११॥
विवेचन स्पष्टीकरण—यहाँ कृष्णलेश्यीकृतयुग्म-कृतयुग्म संज्ञीपंचेन्द्रिय सातवीं नरकपृथ्वी के नैरयिक की उत्कृष्ट स्थिति और पूर्वभव के अन्तिम परिणाम की अपेक्षा अन्तर्मुहूर्त मिलाकर अन्तर्मुहूर्त अधिक तेतीस सागरोपम होता है। ॥ चालीसवां शतक : द्वितीय अवान्तरशतक सम्पूर्ण
***
१. (क) भगवती. अ. वृत्ति, पत्र ९७०
(ख) भगवती. (हिन्दी-विवेचन) भा. ७, पृ. ३७७०