Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapati Sutra Part 04 Stahanakvasi
Author(s): Madhukarmuni
Publisher: Agam Prakashan Samiti
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बिइए एगिदियमहाजुम्मसए :
पढमाइ-एक्कारसपजंता उद्देसगा द्वितीय एकेन्द्रियमहायुग्मशतक : पहले से ग्यारहवें उद्देशक पर्यन्त १. कण्हलेस्सकडजुम्मकडजुम्मएगिदिया णं भंते ! कओ उववज्जति ? गोयमा ! उववातो तहेव। एवं जहा ओहिउद्देसए ( स० ३५-१ उ०१), नवरं इमं नाणत्तं
[१ प्र.] भगवन् ! कृष्णलेश्यी-कृतयुग्म-कृतयुग्मराशिरूप एकेन्द्रिय जीव कहाँ से आकर उत्पन्न होते हैं ? इत्यादि प्रश्न।
[१ उ.] गौतम ! इनका उपपात (श.३५ । १के उ. १) औधिक उद्देशक के अनुसार समझना चाहिए। किन्तु इन बातों में भिन्नता है।
२. ते णं भंते ! जीवा कण्हलेस्सा ? हंता, कण्हलेस्सा। [२ प्र.] भगवन् ! क्या वे जीव कृष्णलेश्या वाले हैं ? [२ उ.] गौतम ! वे कृष्णलेश्या वाले हैं। ३. ते णं भंते ! 'कण्हलेस्सकडजुम्मकडजुम्मएगिंदिय' त्ति कालओ केवचिरं होति ?. गोयमा ! जहन्नेणं एक्कं समयं, उक्कोसेणं अंतोमुहत्तं।
[३ प्र.] भगवन् ! वे कृष्णलेश्यी कृतयुग्म-कृतयुग्मराशिरूप एकेन्द्रिय जीव काल की अपेक्षा कितने काल तक होते हैं ?
[३ उ.] गौतम ! वे जघन्य एक समय तक और उत्कृष्ट अन्तर्मुहूर्त तक होते हैं। ४. एवं ठिती वि। [४] उनकी स्थिति भी इसी प्रकार समझनी चाहिए। ५. सेसं तहेव-जाव अणंतखुत्तो। [५] शेष सब बातें पूर्ववत् यावत् अनन्त बार उत्पन्न हो चुके हैं, यहाँ तक कहनी चाहिए। ६. एवं सोलस वि जुम्मा भाणियव्वा। सेवं भंते ! सेवं भंते ! त्ति० ॥ ३५।२।१॥ [६] इसी प्रकार क्रमशः सोलह महायुग्मों सम्बन्धी कथन पूर्ववत् करना चाहिए। ॥ ३५ । २।१॥ 'हे भगवन् ! यह इसी प्रकार है, भगवन् ! यह इसी प्रकार है,' यों कह कर गौतमस्वामी यावत् विचरते हैं। ७. पढमसमयकण्हलेस्सकडजुम्मकडजुम्मएगिंदिया णं भंते ! कओ उववजंति ?