Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapati Sutra Part 04 Stahanakvasi
Author(s): Madhukarmuni
Publisher: Agam Prakashan Samiti
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पैंतीसवां शतक : उद्देशक ३-११]
[६९१ ४. पढमपढमसमयकडजुम्मकडजुम्मएगिंदिया णं भंते ! कओ उववजंति ? जहा पढमसमयउद्देसओ तहेव निरवसेसं। सेवं भंते ! सेवं भंते ! जाव विहरइ ॥३५॥१६॥
[४ प्र.] भगवन् ! प्रथमप्रथमसमय के कृतयुग्म-कृतयुग्मराशिरूप एकेन्द्रिय जीव कहाँ से आकर उत्पन्न होते हैं ? इत्यादि पर्ववत प्रश्न।
[४ उ.] गौतम ! प्रथमसमय के उद्देशक के अनुसार समग्र कथन करना चाहिए। ॥१-६॥ 'हे भगवन् ! यह इसी प्रकार है, भगवन् ! यह इसी प्रकार है', यों कह कर गौतमस्वामी यावत् विचरते हैं। ५. पढम-अपढमसमयकडजुम्मकडजुम्मएगिंदिया णं भंते ! कओ उववजति ? जहा पढमसमयोउद्देसओ तहेव भाणियव्वो। सेवं भंते ! सेवं भंते ! त्ति० ॥३५।१।७॥
[५ प्र.] भगवन् ! प्रथम-अप्रथमसमय के कृतयुग्म-कृतयुग्मराशिरूप एकेन्द्रिय जीव कहाँ से आकर उत्पन्न होते हैं ? इत्यादि पूर्ववत् प्रश्न।
[५ उ.] गौतम ! इसका समग्र कथन प्रथमसमय के उद्देशकानुसार करना चाहिए॥१-७॥ 'हे भगवन् ! यह इसी प्रकार है० २' यों कह कर श्री गौतमस्वामी यावत् विचरते हैं। ६. पढम-चरिमसमयकडजुम्मकडजुम्मएगिंदिया णं भंते ! कओ उववजंति ? जहा चरिमुद्देसओ तहेव निरवसेसं। सेवं भंते ! सेवं भंते ! त्ति० ॥३५॥१८॥
[६ प्र.] भगवन् ! प्रथम-चरमसमय के कृतयुग्म-कृतयुग्मराशिरूप एकेन्द्रिय जीव कहाँ से आकर उत्पन्न होते हैं ?
[६ उ.] गौतम ! इनका समस्त निरूपण चरमउद्देशक के अनुसार जानना चाहिए॥१-८॥ 'हे भगवन् ! यह इसी प्रकार है० २', यों कह कर श्री गौतमस्वामी यावत् विचरते हैं। ७. पढम-अचरिमसमयकडजुम्मकडजुम्मएगिदिया णं भंते ! कतो उववजंति ? जहा बीओ उद्देसओ तहेव निरवसेसं। सेवं भंते ! सेवं भंते ! जाव विहरइ॥३५॥१॥९॥
[७ प्र.] भगवन् ! प्रथम-अचरमसमय के कृतयुग्म-कृतयुग्मराशिरूप एकेन्द्रिय जीव कहाँ से आकर उत्पन्न होते हैं ?
[७ उ.] गौतम ! इनका समस्त निरूपण दूसरे उद्देशक के अनुसार जानना चाहिए ॥१-९॥ 'हे भगवन् ! यह इसी प्रकार है', यह इसी प्रकार है, इत्यादि पूर्ववत्। ८. चरिम-अचरिमसमयकडजुम्मकडजुम्मएगिंदिया णं भंते ! कओ उववजंति ? जहा चतुत्थो उद्देसओ तहेव। सेवं भंते ! सेवं भंते ! त्ति० ॥३५॥१॥१०॥