Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapati Sutra Part 04 Stahanakvasi
Author(s): Madhukarmuni
Publisher: Agam Prakashan Samiti

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Page 803
________________ ६७२] पढमे एगिंदियसए : चउत्थाइ - एक्कारसमपज्जंता उद्देसगा प्रथम एकेन्द्रिशशतक : चौथे से ग्यारहवें उद्देशक पर्यन्त चौथे से ग्यारहवें उद्देशक तक प्ररूपणा १. एवं सेसा वि अट्ठ उद्देसगा जाव अचरिमो त्ति । नवरं अनंतरा० अणंतरसरिसा, परंपरा० परंपरसरिसा । चरिमा य, अचरिमा य एवं चेव । एवं एते एक्कारस उद्देसगा । ॥ पढमं एगिंदियसेढिसयं समत्तं ॥ ३४-१ ॥ [१] इसी प्रकार शेष आठ उद्देशक भी यावत् 'अचरम' तक जानने चाहिए। विशेष यह है कि अनन्तर - उद्देशक अनन्तर के समान और परम्पर- उद्देशक परम्पर के समान कहना चाहिए । चरम और अचरम सम्बन्धी वक्तव्यता भी इसी प्रकार है । इस प्रकार ये ग्यारह उद्देशक हुए । ॥ प्रथम एकेन्द्रियशतक : चार से ग्यारह उद्देशक पर्यन्त समाप्त ॥ ॥ चौतीसवाँ शतक : प्रथम एकेन्द्रियश्रेणीशतक सम्पूर्ण ॥ ***

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