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पैंतीसवाँ शतक : उद्देशक-१]
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(एक) हो तो वह राशि कल्योजकृतयुग्म कहलाती है, (१४) जिस राशि में से चार संख्या के अपहार से अपहृत करते हुए तीन शेष रहें और उस राशि का अपहार-समय कल्योज हो तो वह राशि कल्योजत्र्योज कहलाती है। (१५) जिस राशि में से चार संख्या के अपहार से अपहृत करते हुए दो बचें और उस राशि का अपहार समय कल्योज हो तो वह राशि कल्योजद्वापरयुग्म कहलाती है, और (१६) जिस राशि में से चार संख्या के अपहार से अपहृत करते हुए एक शेष रहे और उस राशि का अपहार-समय कल्योज हो तो वह राशि कल्योजकल्योज कहलाती है। इसी कारण से हे गौतम ! (कृतयुग्मकृतयुग्म से लेकर) कल्योजकल्योज तक कहा गया है।
विवेचन–महायुग्म : स्वरूप प्रकार और जघन्य संख्या—'युग्म' राशिविशेष को कहते हैं और वे युग्म क्षुल्लक (छोटे) भी होते हैं और महान् (बड़े) भी होते हैं। क्षुल्लकयुग्मों का वर्णन पहले किया जा चुका है। उनसे इनका अन्तर बताने हेतु इस शतक में 'महायुग्म' का वर्णन प्रारम्भ किया जाता है। महायुग्म सोलह हैं, जिनका नाम और संक्षिप्त स्वरूप मूलपाठ में ही बता दिया गया है। उदाहरणार्थ सर्वप्रथम महायुग्म का नाम 'कृतयुग्मकृतयुग्म' है । यह राशि कृतयुग्मकृतयुग्म इसलिए कहलाती है कि जिस राशि में से प्रतिसमय चारचार के अपहार से अपहृत करते हुए अन्त में चार शेष रहें और अपहार-समय भी चार हों, क्योंकि जिस द्रव्य में से अपहरण किया जाता है, वह द्रव्य भी कृतयुग्म है और अपहरण के समय भी कृतयुग्म (चार) हैं । अतः ऐसी राशि कृतयुग्मकृतयुग्म कहलाती है। इसी प्रकार अन्य राशियों का स्वरूप भी शब्दार्थ से जान लेना चाहिए। यथा-१६ की संख्या जघन्य कृतयुग्मकृतयुग्म-राशिरूप है, क्योंकि उसमें से चार संख्या से अपहार करते हुए अन्त में चार शेष रहते हैं और अपहारसमय भी चार होते हैं । कृतयुग्मत्र्योज इस प्रकार है-जघन्य १९ की संख्या में से प्रतिसमय चार का अपहार करते हुए अन्त में तीन शेष रहते हैं और अपहार-समय चार शेष होते हैं। इस प्रकार अपहरण किये जाने वाले द्रव्य की अपेक्षा वह राशियोज है और अपहार-समय की अपेक्षा ‘कृतयुग्म' है। अतएव इस राशि को कृतयुग्मत्र्योज कहा जाता है। यहाँ सर्वत्र अपहारक समय की अपेक्षा पहला पद है और अपहार किये जाने वाले द्रव्य की अपेक्षा दूसरा पद है। इन सोलह महायुग्मों की जघन्य संख्या इस प्रकार है-(१) सोलह आदि, (२) उन्नीस आदि, (३) अठारह आदि, (४) सत्रह आदि, (५) बारह आदि, (६) पन्द्रह आदि, (७) चौदह आदि, (८) तेरह आदि, (९) आठ आदि, (१०) ग्यारह आदि, (१२) नौ आदि, (१३) चार आदि, (१४) सात आदि, (१५) छह आदि और (१६) पांच आदि। कृतयुग्म-कृतयुग्म-राशियुक्त एकेन्द्रियमहायुग्मों में उपपातादि बत्तीस द्वारों की प्ररूपणा
२. कडजुम्मकडजुम्मएगिंदिया णं भंते ! कओ उववजंति ? किं नेरइय० ? जहा उप्पलुद्देसए ( स० ११ उ० १ सु० ५) तहा उववातो।
[२ प्र.] भगवन् ! कृतयुग्म-कृतयुग्मराशिरूप एकेन्द्रिय जीव कहाँ से आकर उत्पन्न होते हैं ? क्या वे नैरयिकों से आकर उत्पन्न होते हैं ? इत्यादि पूर्ववत् प्रश्न।
१. भगवती. अ. वृत्ति, पत्र ९६५-९६६