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________________ ५९८] [व्याख्याप्रज्ञप्तिसूत्र [१११] सवेदी से लेकर नपुंसकवेदी जीवों तक का कथन सलेश्य जीवों के सदृश है। ११२. अवेयगा जहा सम्मट्ठिी। [११२] अवेदी जीवों का कथन सम्यग्दृष्टि के समान है। ११३. सकसायी जाव लोभकसायी जहा सलेस्सा। [११३] सकषायी यावत् लोभकषायी, सलेश्य जीवों के समान जानना। ११४. अकसायी जहा सम्मट्ठिी। [११४] अकषायी जीव सम्यग्दृष्टि के समान जानना। ११५. सजोगी जाव कायजोगी जहा सलेस्सा। [११५] सयोगी यावत् काययोगी जीव सलेश्यी के समान है। ११६. अजोगी जहा सम्मट्टिी। [११६] अयोगी जीव सम्यग्दृष्टि के सदृश हैं। ११७. सागारोवउत्ता अणागारोवउत्ता जहा सलेस्सा। [११७] साकारोपयुक्त और अनाकारोपयुक्त जीव सलेश्य जीवों के सदृश जानना। ११८. एवं नेरतिया वि भाणियव्वा, नवरं नायव्वं जं अत्थि। [११८] इसी प्रकार नैरयिकों के विषय में कहना चाहिए, किन्तु उनमें जो बोल पाये जाते हों, वह कहने चाहिए। ११९. एवं असुरकुमारा वि जाव थणियकुमारा। [११९] इसी प्रकार असुरकुमारों से लेकर स्तनितकुमारों तक के विषय में जानना चाहिए। १२०. पुढविकाइया सव्वट्ठाणेसु वि मज्झिल्लेसु दोसु वि समोसरणेसु भवसिद्धीया वि, अभवसिद्धीया वि। [१२०] पृथ्वीकायिक जीव सभी स्थानों में मध्य के दोनों समवसरणों (अक्रियावादी और अज्ञानवादी) में भवसिद्धिक भी होते हैं और अभवसिद्धिक भी होते हैं। १२१. एवं जाव वणस्सतिकाइय त्ति। [१२१] इसी प्रकार वनस्पतिकायिक पर्यन्त जानना चाहिए। १२२. बेइंदिय-तेइंदिय-चतुरिदिया एवं चेव, नवरं सम्मत्ते, ओहिए नाणे, आभिणिबोहिएनाणे, सुयनाणे, एएसु चेव दोसु मज्झिमेसु समोसरणेसु भवसिद्धीया, नो अभवसिद्धीया, सेसं तं चेव। [१२२] द्वीन्द्रिय, त्रीन्द्रिय और चतुरिन्द्रिय जीवों के विषय में भी इसी प्रकार जानना चाहिए। विशेष यह है कि सम्यक्त्व, औधिक ज्ञान, आभिनिबोधिकज्ञान और श्रुतज्ञान, इनके मध्य के दो समवसरणों (अक्रियावादी
SR No.003445
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapati Sutra Part 04 Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1986
Total Pages914
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Metaphysics, & agam_bhagwati
File Size17 MB
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