Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapati Sutra Part 04 Stahanakvasi
Author(s): Madhukarmuni
Publisher: Agam Prakashan Samiti
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पढमे एगिंदियसए : बीओ उद्देसओ
प्रथम एकेन्द्रिय शतक : द्वितीय उद्देशक
अनन्तरोपपन्नक एकेन्द्रिय के भेद-प्रभेद, उनमें कर्मप्रकृतियाँ, उनके बन्ध और वेदन का निरूपण
१. कतिविधा णं भंते ! अणंतरोववन्नगा एगिंदिया पन्नत्ता ?
गोयमा ! पंचविहा अणंतरोवनगा एगिंदिया पन्नत्ता, तं जहा-पुढविकाइया जाव वणस्सतिकाइया।
[१.प्र.] भगवन् ! अनन्तरोपपन्नक (तत्कालोत्पन्न) एकेन्द्रिय जीव कितने प्रकार के कहे हैं ?
६१ उ.] गौतम ! अनन्तरोपपन्नक एकेन्द्रिय जीव पांच प्रकार के कहे हैं, यथा—पृथ्वीकायिक यावत् वनस्पतिकायिक।
२. अणंतरोववनगा णं भंते ! पुढविकाइया कतिविहा पन्नत्ता ? गोयमा ! दुविहा पन्नत्ता, तं जहा-सुहुमपुढविकाइया य बादरपुढविकाइया य। [२ प्र.] भगवन् ! अनन्तरोपपत्रक पृथ्वीकायिक जीव कितने प्रकार के कहे गए हैं ?
[२ उ.] गौतम ! वे दो प्रकार के कहे गए हैं, यथा—सूक्ष्मअनन्तरोपपन्नक पृथ्वीकायिक और बादरअनन्तरोपपन्नकं पृथ्वीकायिक।
३. एवं दुपएणं भेएणं जाव वणस्सकाइया। [३] इसी प्रकार (प्रत्येक एकेन्द्रिय के) दो-दो भेद वनस्पतिकायिक पर्यन्त समझना। ४. अणंतरोववन्नगसुहुमपुढविकाइयाणं भंते ! कति कम्मप्पगडीओ पन्नत्ताओ? गोयमा ! अट्ठ कम्मप्पगडीओ पन्नत्ताओ, तं जहा-नाणावरणिजं जाव अंतराइयं। [४ प्र.] भगवन् ! अनन्तरोपपत्रकसूक्ष्मपृथ्वीकायिक जीव के कितनी कर्मप्रकृतियाँ कही गई हैं ? [४ उ.] गौतम ! उनके आठ कर्मप्रकृतियाँ कही गई हैं, यथा—ज्ञानावरणीय यावत् अन्तरायकर्म' ५. अणंतरोववन्नगबादरपुढविकायियाणं भंते ! कति कम्मप्पगडीओ पन्नत्ताओ? गोयमा ! अट्ठ कम्मप्पगडीओ पन्नत्ताओ, तं जहा—नाणावरणिजं जाव अंतराइयं। [५ प्र.] भगवन् ! अनन्तरोपपन्नकबादरपृथ्वीकायिक के कितनी कर्मप्रकृतियाँ कही गई हैं ? . [५ उ.] गौतम ! उनके आठ कर्मप्रकृतियाँ कही हैं, यथा—ज्ञानावरणीय यावत् अन्तरायकर्म ।