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[व्याख्याप्रज्ञप्तिसूत्र
सम
भगवन् ! वह कितने समय की विग्रहगति से उत्पन्न होता है ? [उ.] पूर्ववत् सब कथन 'इस कारण से ऐसा कहा जाता है', तक करना चाहिए।
। २४०+८०+८०+=४००। २७. अपजत्तसुहुमपुढविकाइए णं भंते ! इमीसे रयणप्पभाए पुढवीए पच्चत्थिमिल्ले चरिमंते समोहणित्ता जे भविए इमीसे रयणप्पभाए पुढवीए पुरथिमिल्ले चरिमंते अपज्जत्तसुहुमपुढविकाइयत्ताए उववजित्तए से णं भंते ! कडसमडएणं?
सेवं तहेव निरवसेसं।
[२७ प्र.] भगवन् ! अपर्याप्त सूक्ष्म पृथ्वीकायिक जीव रत्नप्रभापृथ्वी के पश्चिम-चरमान्त में समुद्घात करके रत्नप्रभापृथ्वी के पूर्वी-चरमान्त में अपर्याप्त सूक्ष्म पृथ्वीकायिक-रूप से उत्पन्न हो तो कितने समय की विग्रहगति से उत्पन्न होता है ?
[२७ उ.] गौतम ! पूर्ववत् समस्त कथन करना चाहिए।
२४. एवं जहेव पुरथिमिल्ले चरिमंते सव्वपदेसु वि समोहया पच्चस्थिमिल्ले चरिमंते समयखेते य उववातिया, जे य समयखेत्ते समोहया पच्चत्थिमिल्ले चरिमंते समयखेत्ते य उववातिया, एवं एएणं चेव कमेणं पच्चत्थिमिल्ले चरिमंते समयखेत्ते य समोहया पुरथिमिल्ले चरिमंते समयखेत्ते य उववातेयव्वा तेणेव गमएणं। ४००-८००।
[२८] जिस प्रकार पूर्वी-चरमान्त के सभी पदों में समद्घात करके पश्चिम चरमान्त में और मनुष्यक्षेत्र में और जिनका मनुष्यक्षेत्र में समुद्घातपूर्वक पश्चिम-चरमान्त में और मनुष्यक्षेत्र में उपपात कहा उसी प्रकार उसी क्रम में पश्चिम-चरमान्त में मनुष्यक्षेत्र में समुद्घातपूर्वक पूर्वीय-चरमान्त में और मनुष्यक्षेत्र के उसी गमक से उपपात होता है। + ४००-८०० ॥
२९. एवं एतेणं गमएणं दाहिणिल्ले चरिमंते समोहयाणं समयखेत्ते य, उत्तरिल्ले चरिमंते समयखेत्ते, य उववाओ। ४००-१२००।
[२९] और इसी गमक से दक्षिण के चरमान्त में समुद्घात करके मनुष्यक्षेत्र में और उत्तर के चरमान्त में तथा मनुष्यक्षेत्र में उपपात कहना चाहिए। +४००=१२०० ।
३०. एवं चेव उत्तरिल्ले चरिमंते समयखेत्ते य समोहया, दाहिणिल्ले चरिमंते समयखेत्ते य उववातेयव्वा तेणेव गमएणं। ४००-१६००।
_ [३०] इसी प्रकार उत्तरी-चरमान्त में और मनुष्यक्षेत्र में समुद्घात करके दक्षिणी-चरमान्त में और मनुष्यक्षेत्र में उपपात कहना चाहिए। +४००-१६०० ।
३१. अपजत्तसुहमपुढविकाइए णं भंते ! सक्करप्पभाए पुढवीए पुरथिमिल्ले चरिमंते समोहए, समोहणित्ता जे भविए सक्करप्पभाए पुढवीए पच्चथिमिल्ले चरिमंते अपजत्तसुहुर्मपुढविकाइयत्ताए उवव०?