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________________ ६५२] [व्याख्याप्रज्ञप्तिसूत्र सम भगवन् ! वह कितने समय की विग्रहगति से उत्पन्न होता है ? [उ.] पूर्ववत् सब कथन 'इस कारण से ऐसा कहा जाता है', तक करना चाहिए। । २४०+८०+८०+=४००। २७. अपजत्तसुहुमपुढविकाइए णं भंते ! इमीसे रयणप्पभाए पुढवीए पच्चत्थिमिल्ले चरिमंते समोहणित्ता जे भविए इमीसे रयणप्पभाए पुढवीए पुरथिमिल्ले चरिमंते अपज्जत्तसुहुमपुढविकाइयत्ताए उववजित्तए से णं भंते ! कडसमडएणं? सेवं तहेव निरवसेसं। [२७ प्र.] भगवन् ! अपर्याप्त सूक्ष्म पृथ्वीकायिक जीव रत्नप्रभापृथ्वी के पश्चिम-चरमान्त में समुद्घात करके रत्नप्रभापृथ्वी के पूर्वी-चरमान्त में अपर्याप्त सूक्ष्म पृथ्वीकायिक-रूप से उत्पन्न हो तो कितने समय की विग्रहगति से उत्पन्न होता है ? [२७ उ.] गौतम ! पूर्ववत् समस्त कथन करना चाहिए। २४. एवं जहेव पुरथिमिल्ले चरिमंते सव्वपदेसु वि समोहया पच्चस्थिमिल्ले चरिमंते समयखेते य उववातिया, जे य समयखेत्ते समोहया पच्चत्थिमिल्ले चरिमंते समयखेत्ते य उववातिया, एवं एएणं चेव कमेणं पच्चत्थिमिल्ले चरिमंते समयखेत्ते य समोहया पुरथिमिल्ले चरिमंते समयखेत्ते य उववातेयव्वा तेणेव गमएणं। ४००-८००। [२८] जिस प्रकार पूर्वी-चरमान्त के सभी पदों में समद्घात करके पश्चिम चरमान्त में और मनुष्यक्षेत्र में और जिनका मनुष्यक्षेत्र में समुद्घातपूर्वक पश्चिम-चरमान्त में और मनुष्यक्षेत्र में उपपात कहा उसी प्रकार उसी क्रम में पश्चिम-चरमान्त में मनुष्यक्षेत्र में समुद्घातपूर्वक पूर्वीय-चरमान्त में और मनुष्यक्षेत्र के उसी गमक से उपपात होता है। + ४००-८०० ॥ २९. एवं एतेणं गमएणं दाहिणिल्ले चरिमंते समोहयाणं समयखेत्ते य, उत्तरिल्ले चरिमंते समयखेत्ते, य उववाओ। ४००-१२००। [२९] और इसी गमक से दक्षिण के चरमान्त में समुद्घात करके मनुष्यक्षेत्र में और उत्तर के चरमान्त में तथा मनुष्यक्षेत्र में उपपात कहना चाहिए। +४००=१२०० । ३०. एवं चेव उत्तरिल्ले चरिमंते समयखेत्ते य समोहया, दाहिणिल्ले चरिमंते समयखेत्ते य उववातेयव्वा तेणेव गमएणं। ४००-१६००। _ [३०] इसी प्रकार उत्तरी-चरमान्त में और मनुष्यक्षेत्र में समुद्घात करके दक्षिणी-चरमान्त में और मनुष्यक्षेत्र में उपपात कहना चाहिए। +४००-१६०० । ३१. अपजत्तसुहमपुढविकाइए णं भंते ! सक्करप्पभाए पुढवीए पुरथिमिल्ले चरिमंते समोहए, समोहणित्ता जे भविए सक्करप्पभाए पुढवीए पच्चथिमिल्ले चरिमंते अपजत्तसुहुर्मपुढविकाइयत्ताए उवव०?
SR No.003445
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapati Sutra Part 04 Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1986
Total Pages914
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Metaphysics, & agam_bhagwati
File Size17 MB
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