Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapati Sutra Part 04 Stahanakvasi
Author(s): Madhukarmuni
Publisher: Agam Prakashan Samiti

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Page 784
________________ चौतीसवां शतक : उद्देशक-१] [६५३ एवं जहेव रयणप्पभाए जाघ से तेणटेणं। [३१ प्र.] भगवन् ! अपर्याप्त सूक्ष्म पृथ्वीकायिक जीव शर्कराप्रभापृथ्वी के पूर्वी-चरमान्त में मरणसमुद्घात करके शर्कराप्रभापृथ्वी के पश्चिम-चरमान्त में अपर्याप्त सूक्ष्म पृथ्वीकायिक रूप से उत्पन्न होने योग्य हो तो वह कितने समय की विग्रहगति से उत्पन्न होता है। [३१ उ.] गौतम ! (पूर्वोक्त) रत्नप्रभापृथ्वी-सम्बन्धी कथनानुसार इस कारण से ऐसा कहा है', यहां तक कहना चाहिए। ३२. एवं एएणं कमेणं जाव पजत्तएसु सुहुमतेउकाइएसु। [३२] इसी क्रम में पर्याप्त सूक्ष्म तेजस्कायिक पर्यन्त कहना चाहिए। ३३. [१] अपज्जत्तसुहमपुढविकाइए णं भंते ! सक्करप्पभाए पुढवीए पुरथिभिल्ले चरिमंते समोहए, समोहणित्ता जे भविए समयखेत्ते अपज्जत्तबायरतेउकाइयत्ताए उववजित्तए से णं भंते ! कतिसमइ० पुच्छा। गोयमा ! दुसमइएणं वा तिसमइएण वा विग्गहेणं उववजिज्जा। ___ [३३-१ प्र.] भगवन् ! अपर्याप्त सूक्ष्म पृथ्वीकायिक जीव शर्कराप्रभापृथ्वी के पूर्व चरमान्त में मरणसमुद्घात करके, मनुष्यक्षेत्र के अपर्याप्त बादर तेजस्कायिक-रूप से उत्पन्न होने योग्य हो, तो वह कितने समय की विग्रहगति से उत्पन्न होता है ? [३३-१ उ.] गौतम ! वह दो या तीन समय की विग्रहगति से उत्पन्न होता है। [२] से केणटेणं०? एवं खलु गोयमा ! मए सत्त सेढीओ पन्नत्ताओ, तंजहा उज्जुयायता जाव अद्धचक्कवाला। एगतोवंकाए सेढीए उववजमाणे दुसमइएणं विग्गहेणं उववजेज्जा, दुहओवंकाए सेढीए उववजमाणे तिसमइएणं विग्गहेणं उववजेजा, से तेणटेणं० । [३३-२ प्र.] भगवन् ! किस कारण से ऐसा कहते हैं कि वह दो या तीन समय की विग्रहगति से उत्पन्न होता है ? [३३-२ उ.] गौतम ! मैंने सात श्रेणियाँ कही हैं यथा-ऋज्वायता से लेकर अर्द्धचक्रवाल पर्यन्त । जो एकतोवक्रा श्रेणी से उत्पन्न होता है, वह दो समय की विग्रहगति से उत्पन्न होता है और जो उभयतोवक्रा श्रेणी से उत्पन्न होता है, वह तीन समय की विग्रहगति से उत्पन्न होता है। इस कारण से मैंने पूर्वोक्त बात कही है। ३४. एवं पजत्तएसु वि बायरतेउकाइएसु। सेसं जहा रयणप्पभाए। [३४] इस प्रकार पर्याप्त बादर तेजस्कायिक-रूप से (उत्पन्न होने योग्य का उपपात कहना चाहिए) शेष सब कथन रत्नप्रभापृथ्वी के समान कहना चाहिए। ३५. जे वि बायरतेउकाइया अपज्जत्तगा य पज्जत्तगा य समयखेत्ते समोहया, समोहणित्ता दोच्चाए पुढवीए पच्चस्थिमिल्ले चरिमंते पुढविकाइएसुचउब्विहेसु, आउकाइएसु चउव्विहेसु, तेउकाइएसु

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