Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapati Sutra Part 04 Stahanakvasi
Author(s): Madhukarmuni
Publisher: Agam Prakashan Samiti

Previous | Next

Page 792
________________ चौतीसवां शतक : उद्देशक-१] [६६१ [५७] पर्याप्त सूक्ष्मपृथ्वीकायिक जीव के उपपात का कथन इसी प्रकार पूर्वोक्त बारह स्थानों में करना चाहिए। ५८. एवं एएणं गमएणं जाव सुहुवणस्सइकाइओ पजत्तओ सुहुमवणस्सइकाइएसु पजत्तएसु चेव भाणितव्यो। [५८] इसी प्रकार इस गमक (पाठ) से पर्याप्त सूक्ष्मवनस्पतिकायिक तक पर्याप्त सूक्ष्मवनस्पतिकायिक जीवों में उपपात का कथन करना चाहिए। ५९. [१] अपज्जत्तसुहमपुढविकाइए णं भंते ! लोगस्स पुरथिमिल्ले चरिमंते समोहए, समोहणित्ता जे भविए लोगस्स दाहिणिल्ले चरिमंते अपज्जत्तसुहुमपुढविकाइएसु उववजित्तए से णं भंते ! कतिसमइएणं विग्गहेणं उववज्जेज्जा ? गोयमा ! दुसमइएण वा, तिसमइएण वा, चउसमइएण वा विग्गहेणं उववज्जिजा। [५९-१ प्र.] भगवन् ! जो अपर्याप्त सूक्ष्मपृथ्वीकायिक जीव लोक के पूर्वी-चरमान्त में समुद्घात करके लोक के दक्षिण-चरमान्त में अपर्याप्त सूक्ष्मपृथ्वीकायिक जीवों में उत्पन्न होने योग्य है, वह कितने समय की विंग्रहगति से उत्पन्न होता है ? [५९-१ उ.] गौतम ! वह दो समय, तीन समय या चार समय की विग्रहगति से उत्पन्न होता है। [२] से केणटेणं भंते ! एवं वुच्चत्ति ? एवं खलु गोयमा ! मए सत्त सेढीओ पन्नत्ताओ, तं जहा-उज्जुआयता जाव अद्धचक्कवाला। एगतोवंकाए सेढीए उववज्जमाणे दुसमइएणं विग्गहेणं उववज्जेज्जा; दुहतोवंकाए सेढीए उववजमाणे जे भविए एगपयरंसि अणुसेढिं उववज्जित्तए से णं तिसमइएणं विग्गहेणं उववजेजा, जे भविए विसेढिं उववजित्तए से णं चउसमइएणं विग्गहेणं उववजेजा; से तेणट्टेणं गोयमा ! ०। [५९-२ प्र.] भगवन् ! ऐसा किस कारण से कहते हैं कि वह दो समय यावत् चार समय की विग्रहगति से उत्पन्न होता है ? [५९-२ उ.] गौतम ! मैंने सात श्रेणियाँ बताई हैं, यथा—ऋज्वायता यावत् अर्द्धचक्रवाला। यदि वह जीव एकतोवक्रा श्रेणी से उत्पन्न होता है तो दो समय की विग्रहगति से उत्पन्न होता है। यदि वह उभयतोवक्रा श्रेणी से एक प्रतर में अनुश्रेणी (समश्रेणी) से उत्पन्न होने योग्य है तो तीन समय की विग्रहगति से उत्पन्न होता है और यदि वह विश्रेणी से उत्पन्न होने योग्य है तो चार समय की विग्रहगति से उत्पन्न होता है । हे गौतम ! इसी कारण मैंने कहा कि वह दो, तीन या चार समय की विग्रहगति से उत्पन्न होता है। ६०. एवं एएणं गमएणं पुरथिमिल्ले चरिमंते समोहओ दाहिणिल्ले चरिमंते उववातेयव्वो। जाव सुहुमवणस्सतिकाइओ पजत्तओ सुहुमवणस्सइकाइएसु पजत्तएसु चेव, सव्वेसिं दुसमइओ तिसमइओ, चउसमइओ विग्गहो भाणियव्वो। [६०] इसी प्रकार इसी गमक से पूर्वी-चरमान्त में समुद्घात करके दक्षिण-चरमान्त में यावत् पर्याप्त

Loading...

Page Navigation
1 ... 790 791 792 793 794 795 796 797 798 799 800 801 802 803 804 805 806 807 808 809 810 811 812 813 814 815 816 817 818 819 820 821 822 823 824 825 826 827 828 829 830 831 832 833 834 835 836 837 838 839 840 841 842 843 844 845 846 847 848 849 850 851 852 853 854 855 856 857 858 859 860 861 862 863 864 865 866 867 868 869 870 871 872 873 874 875 876 877 878 879 880 881 882 883 884 885 886 887 888 889 890 891 892 893 894 895 896 897 898 899 900 901 902 903 904 905 906 907 908 909 910 911 912 913 914