Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapati Sutra Part 04 Stahanakvasi
Author(s): Madhukarmuni
Publisher: Agam Prakashan Samiti

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Page 790
________________ चौतीसवां शतक : उद्देशक-१] [६५९ [४९-२ प्र.] भगवन् ! किस कारण से ऐसा कहते हैं कि यावत् वह तीन समय की विग्रहगति से उत्पन्न होता है? [४९-२ उ.] गौतम ! जैसे रत्नप्रभापृथ्वी में सप्तश्रेणीरूप हेतु कहा, वही हेतु यहाँ जानना चाहिए। ५०. एवं पजत्तबादरतेउकाइयत्ताए वि। [५०] इसी प्रकार पर्याप्त बादरतेजस्कायिक-रूप में उपपात का भी कथन करना चाहिए। ५१. वाउकाइएसु, वणस्सतिकाइएसु य जहा पुढविकाइएसु उववातिओ तहेव चउक्कएणं भेएणं उववाएयव्वो। [५१] जिस प्रकार पृथ्वीकायिक का चारों भेदों सहित उपपात कहा, उसी प्रकार वायुकायिक और वनस्पतिकायिक का भी चार-चार भेद सहित उपपात कहना चाहिए। ५२. एवं पजत्तबायरतेउकाइओ वि एएसु चेव ठाणेसु उववातेयव्यो। [५२] इसी प्रकार पर्याप्त बादरतेजस्कायिक जीव का उपपात भी इन्हीं स्थानों में जानना चाहिए। ५३. वाउकाइय-वणस्सतिकाइयाणं जहेव पुढविकाइयत्ते उववातिओ तहेव भाणियव्वो। [५३] जिस प्रकार पृथ्वीकायिक जीव के रूप में उपपात का कथन किया, उसी प्रकार वायुकायिक और वनस्पतिकायिक जीवों के उपपात का कथन करना चाहिए। ५४. अपजत्तसुहुमपुढविकाइएणं भंते ! उड्ढलोकखेत्त..." जे भविए अहेलोगखेत्तनालीए बाहिरिल्ले खेत्ते अपज्जत्तसुहुमकाइयत्ताए उववज्जित्तए से णं भंते ! कतिस०? एवं उड्डलोगखेत्तनालीए वि बाहिरिल्ले खेत्ते समोहयाणं अहेलोगखेत्तनालीए बाहिरिल्ले खेत्ते उववजंताणं सो चेव गमओ निरवसेसो भाणियव्वो जाव बायरवणस्सतिकाइओ पजत्तओ बादरवणस्सइकाइएसु पजत्तएसु उववातिओ। [५४ प्र.] भगवन् ! जो अर्याप्त सूक्ष्मपृथ्वीकायिक जीव ऊर्ध्वलोकक्षेत्रीय त्रसनाडी के बाहर के क्षेत्र में मरणसमुद्घात करके, अधोलोकक्षेत्रीय त्रसनाडी के बाहर के क्षेत्र में अपर्याप्त सूक्ष्मपृथ्वीकायिकरूप से उत्पन्न होने योग्य है तो भंते ! वह कितने समय की विग्रहगति से उत्पन्न होता है ? । [५४ उ.] गौतम ! ऊर्ध्वलोकक्षेत्रीय त्रसनाडी के बाहर के क्षेत्र में मरणसमुद्घात करके अधोलोकक्षेत्रीय वसनाडी के बाहर के क्षेत्र में उत्पन्न होने वाले पृथ्वीकायिकादि के लिए भी वही समग्र पूर्वोक्त गमक पर्याप्त बादरवनस्पतिकायिक जीव का पर्याप्त बादरवनस्पतिकायिकरूप में उपपात तक कथन यहाँ करना चाहिए। ५५. [१] अपज्जत्तसुहमपुढविकाइए णं भंते ! लोगस्स पुरथिमिल्ले चरिमंते समोहए, समोहणित्ता जे भविए लोगस्स पुरथिमिल्ले चरिमंते अपजत्तसुहमपुढविकाइयत्ताए उववज्जित्तए से णं भंते ! कइसमइएणं विग्गहेणं उववजेजा। गोयमा ! एगसमइएण वा, दुसमइएण वा, तिसमइएण वा, चउसमइएण वा विग्गहेणं

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