Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapati Sutra Part 04 Stahanakvasi
Author(s): Madhukarmuni
Publisher: Agam Prakashan Samiti
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चोत्तीसइमं सयं : बारस एगिदिय-सेढि-सयाई चौतीसवां शतक : बारह एकेन्द्रिय-श्रेणी शतक
प्राथमिक यह भगवतीसूत्र का चौतीसवाँ श्रेणीशतक या एकेन्द्रिय श्रेणीशतक है। इसके भी पूर्व शतक के समान बारह अवान्तर शतक हैं। इस शतक में एकेन्द्रियजीव से ही सम्बन्धित चर्चा की गई है। किन्तु पृथ्वीकायिक (भेद-प्रभेद सहित) से लेकरं वनस्पतिकायिक तक के समस्त एकेन्द्रिय जीवों का जब मरण होता है तब उन्हें जिस गति-योनि में जाना होता है, वहाँ वे एक समय की विग्रहगति से जाते हैं अथवा दो, तीन या चार समय की विग्रहगति से? इत्यादि चर्चा मुख्य रूप से पूर्वशतक में उक्त विभिन्न विशेषणों से युक्त एकेन्द्रिय को लेकर की गई है। साथ ही एक, दो, तीन या चार समय की विग्रहगति से ही वे क्यों उत्पन्न होते हैं, इसका भी विश्लेषण किया गया है। ऋज्वायता, एकतोवक्रा आदि सात श्रेणियों का प्रतिपादन किया गया है। ये आकाशप्रदेश में पहले से निश्चित या अंकित नहीं हैं । जीव अपनी स्वाभाविक गति से अनुश्रेणी, विश्रेणी आदि से जाता है, तब सात श्रेणियों में से जिस श्रेणी में जाता है, उसी के अनुसार उसकी विग्रहगति का समयमान निश्चित किया जाता है। इसी प्रकार एक दिशा के चरमान्त से दूसरी दिशा के चरमान्त में तथा उसी दिशा के अमुक क्षेत्र में कौन-सा एकेन्द्रिय कितने समय की विग्रहगति से जाता है, इसका भी परिमाण बताया है। सातों श्रेणियों का स्वरूप भी वृत्तिकार ने स्पष्ट किया है। अधिकांश दार्शनिक तो एकेन्द्रिय जीवों के जन्म-मरण को ही नहीं मानते। जो मानते हैं, उनमें से कई कहते हैं कि एकेन्द्रिय मरकर एकेन्द्रिय ही बनता है अथवा शरीर नष्ट होने के साथ ही वह सदा के लिए मर जाता है, फिर जन्मता नहीं। इस प्रकार की असंगत धारणाओं का निराकरण भी तथा मरणोत्तरदशा एवं भावी गति-योनि में उत्पत्ति होने से पूर्व की ऋज्वायता आदि सात श्रेणियों से गमन भी बता दिया है। निष्कर्ष यह है कि मरने के बाद एकेन्द्रिय जीव भी अधिक से अधिक चार समय में स्वगन्तव्य स्थान में पहुँच जाता है। मरण के पश्चात् इतनी तीव्रगति से वह जाता है।
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