Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapati Sutra Part 04 Stahanakvasi
Author(s): Madhukarmuni
Publisher: Agam Prakashan Samiti
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छट्ठे एगिंदियस : पढमाइ - एक्कारस- पज्जंता उद्देसगा
छठा एकेन्द्रियशतक : पहले से ग्यारहवें उद्देशक पर्यन्त
प्रथम एकेन्द्रियशतकानुसार : कृष्णलेश्यी भवसिद्धिक-एकेन्द्रिय-वक्तव्यता- निर्देश १. कतिविहा णं भंते ! कण्हलेस्सा भवसिद्धीया एगिंदिया पन्नत्ता ?
गोयमा ! पंचविहा कण्हलेस्सा भवसिद्धीया एगिंदिया पन्नत्ता, पुढविकाइया जाव वणस्सइ
काइया ।
[१ प्र.] भगवन् ! कृष्णलेश्यी एकेन्द्रिय जीव कितने प्रकार के कहे हैं ?
[१ उ.] गौतम ! कृष्णलेश्यावान् भवसिद्धिक एकेन्द्रिय जीव पांच प्रकार के कहे गए हैं, यथा— पृथ्वीकायिक यावत् वनस्पतिकायिक ।
·२. कण्हलेस्सभवसिद्धीयपुढविकाइया णं भंते ! कतिविहा पन्नत्ता ?
गोयमा ! दुविहा पण्णत्ता, तं जहा — सुहुमपुढविकाइया य, बायरपुढविकाइया य ।
[२ प्र.] भगवन् ! कृष्णलेश्यी भवसिद्धिक पृथ्वीकायिक कितने प्रकार के कहे हैं ? [२ उ.] गौतम ! वे दो प्रकार के कहे हैं, यथा-- - सूक्ष्मपृथ्वीकायिक और बादरपृथ्वीकायिक । ३. कण्हलेस्सभवसिद्धीयसुहुमपुढविकाइया णं भंते ! कतिविहा पन्नत्ता ?
गोयमा ! दुविहा पत्ता, तं जहा — पज्जत्तगा य अपजत्तगा य ।
[३ प्र.] भगवन् ! कृष्णलेश्यी भवसिद्धिक सूक्ष्मपृथ्वीकायिक कितने प्रकार के कहे हैं ? [३ उ.] गौतम ! वे दो प्रकार के कहे हैं, यथा पर्याप्तक और अपर्याप्तक । ४. एवं बायरा वि ।
[४] इसी प्रकार बादरपृथ्वीकायिकों के भी दो भेद हैं।.
५. एवं एतेणं अभिलावेणं तहेव चउक्कओ भेदो भाणियव्वो ।
[५] इसी अभिलाप से उसी प्रकार प्रत्येक के चार-चार भेद कहने चाहिए।
६. कण्हलेस्सभवसिद्धीयअपज्जत्तासुहुमपुढविकाइयाणं भंते ! कति कम्मपगडीओ पन्नत्ताओ ?
एवं एएणं अभिलावेणं जहेव ओहिउद्देसए तहेव जाव वेदेति त्ति ।
[६ प्र.] भगवन् ! कृष्णलेश्यी-भवसिद्धिक-अपर्याप्तक-सूक्ष्मपृथ्वीकायिक जीवों के कितनी कर्मप्रकृतियाँ
कही हैं ?