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________________ [ ६४१ छट्ठे एगिंदियस : पढमाइ - एक्कारस- पज्जंता उद्देसगा छठा एकेन्द्रियशतक : पहले से ग्यारहवें उद्देशक पर्यन्त प्रथम एकेन्द्रियशतकानुसार : कृष्णलेश्यी भवसिद्धिक-एकेन्द्रिय-वक्तव्यता- निर्देश १. कतिविहा णं भंते ! कण्हलेस्सा भवसिद्धीया एगिंदिया पन्नत्ता ? गोयमा ! पंचविहा कण्हलेस्सा भवसिद्धीया एगिंदिया पन्नत्ता, पुढविकाइया जाव वणस्सइ काइया । [१ प्र.] भगवन् ! कृष्णलेश्यी एकेन्द्रिय जीव कितने प्रकार के कहे हैं ? [१ उ.] गौतम ! कृष्णलेश्यावान् भवसिद्धिक एकेन्द्रिय जीव पांच प्रकार के कहे गए हैं, यथा— पृथ्वीकायिक यावत् वनस्पतिकायिक । ·२. कण्हलेस्सभवसिद्धीयपुढविकाइया णं भंते ! कतिविहा पन्नत्ता ? गोयमा ! दुविहा पण्णत्ता, तं जहा — सुहुमपुढविकाइया य, बायरपुढविकाइया य । [२ प्र.] भगवन् ! कृष्णलेश्यी भवसिद्धिक पृथ्वीकायिक कितने प्रकार के कहे हैं ? [२ उ.] गौतम ! वे दो प्रकार के कहे हैं, यथा-- - सूक्ष्मपृथ्वीकायिक और बादरपृथ्वीकायिक । ३. कण्हलेस्सभवसिद्धीयसुहुमपुढविकाइया णं भंते ! कतिविहा पन्नत्ता ? गोयमा ! दुविहा पत्ता, तं जहा — पज्जत्तगा य अपजत्तगा य । [३ प्र.] भगवन् ! कृष्णलेश्यी भवसिद्धिक सूक्ष्मपृथ्वीकायिक कितने प्रकार के कहे हैं ? [३ उ.] गौतम ! वे दो प्रकार के कहे हैं, यथा पर्याप्तक और अपर्याप्तक । ४. एवं बायरा वि । [४] इसी प्रकार बादरपृथ्वीकायिकों के भी दो भेद हैं।. ५. एवं एतेणं अभिलावेणं तहेव चउक्कओ भेदो भाणियव्वो । [५] इसी अभिलाप से उसी प्रकार प्रत्येक के चार-चार भेद कहने चाहिए। ६. कण्हलेस्सभवसिद्धीयअपज्जत्तासुहुमपुढविकाइयाणं भंते ! कति कम्मपगडीओ पन्नत्ताओ ? एवं एएणं अभिलावेणं जहेव ओहिउद्देसए तहेव जाव वेदेति त्ति । [६ प्र.] भगवन् ! कृष्णलेश्यी-भवसिद्धिक-अपर्याप्तक-सूक्ष्मपृथ्वीकायिक जीवों के कितनी कर्मप्रकृतियाँ कही हैं ?
SR No.003445
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapati Sutra Part 04 Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1986
Total Pages914
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Metaphysics, & agam_bhagwati
File Size17 MB
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