SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 771
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ६४० ] पंचमे एगिंदियस : पढमाइ - एक्कारस-पज्जंता उद्देसगा पांचवाँ एकेन्द्रियशतक : पहले से ग्यारहवें उद्देशक पर्यन्त प्रथम एकेन्द्रियशतकानुसार भवसिद्धिक-एकेन्द्रिय-वक्तव्यता- निर्देश १. कतिविहाणं भंते ! भवसिद्धीया एगिंदिया पन्नत्ता ? गोयमा ! पंचविहा भवसिद्धीया एगिंदिया पन्नत्ता, तं जहा - पुढविकाइया जाव वणस्सतिकाइया । भेदो चउक्कओ जाव वणस्सइकाइय त्ति । [१ प्र.] भगवन् ! भविसिद्धिक एकेन्द्रिय कितने प्रकार के कहे हैं ? [१ उ.] गौतम ! भवसिद्धिक एकेन्द्रिय पांच प्रकार के कहे हैं, यथा- - पृथ्वीकायिक यावत् वनस्पतिकायिक। इनके चार-चार भेद (आदि समस्त वक्तव्यता) वनस्पतिकायिक पर्यन्त पूर्ववत् कहनी चाहिए । २. भवसिद्धीयअपज्जत्तसुहुमपुढविकाइयाणं भंते ! कति कम्मपगडीओ पन्नत्ताओ ? एवं एतेणं अभिलावेणं जहेव पढमिल्लं एगिंदियसयं तहेव भवसिद्धीयसयं पि भाणियव्वं । उद्देसगपरिवाडी तहेव जाव अचरिमति । सेवं भंते! सेवं भंते ! ति० । ॥ पंचमे एगिंद्रियसए : पढमाइ- एक्कारस-पजंता उद्देगा। समत्ता ॥ ५ । १-११॥ ॥ तेतीसइमे सए : पंचमं एगिंदियसयं समत्तं ॥ ३३-५ ॥ [२ प्र.] भगवन् ! भवसिद्धिक अपर्याप्त सूक्ष्मपृथ्वीकायिक जीव के कितनी कर्मप्रकृतियाँ कही हैं ? [२ उ.] गौतम ! प्रथम एकेन्द्रियशतक के समान भवसिद्धिकशतक भी कहना चाहिए। उद्देशकों की परिपाटी भी उसी प्रकार (पूर्ववत्) अचरम उद्देशक पर्यन्त कहनी चाहिए। 'हे भगवन् ! यह इसी प्रकार हैं, भगवन् ! यह इसी प्रकार है', यों कहकर गौतमस्वामी यावत् विचरते हैं । ॥ पांचवाँ एकेन्द्रियशतक : पहले से ग्यारहवें उद्देशक पर्यन्त सम्पूर्ण ॥ ॥ तेतीसवाँ शतक : पंचम एकेन्द्रियशतक समाप्त ॥ ***
SR No.003445
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapati Sutra Part 04 Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1986
Total Pages914
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Metaphysics, & agam_bhagwati
File Size17 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy