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[६३९ चउत्थे एगिंदियसए : पढमाइ-एक्कारस-पज्जंता उद्देसगा
चतुर्थ एकेन्द्रियशतक : पहले से ग्यारहवें पर्यन्त उद्देशक द्वितीय एकेन्द्रियशतकानुसार कापोतलेश्यी एकेन्द्रिय-वक्तव्यता-निर्देश
१. एवं काउलेस्सेहि वि सयं भाणियव्वं, नवरं 'काउलेस्स' त्ति अभिलावो। ॥ चउत्थे एगिंदियसए : पढमाइ-एक्कारस-पजंत्ता उद्देसगा समत्ता॥४-१-११॥
- ॥ तेतीसइमे सए : चउत्थं एगिंदियसयं समत्तं ॥३३-४॥ [१] कापोतलेश्यी एकेन्द्रिय के विषय में भी इसी प्रकार (पूर्ववत्) शतक कहना चाहिए, किन्तु 'कापोतलेश्या', ऐसा. पाठ कहना चाहिए। ॥ तेतीसवां शतक : चतुर्थ एकेन्द्रिय शतक : पहले से ग्यारहवें उद्देशक पर्यन्त सम्पूर्ण॥
॥ तेतीसवाँ शतक : चतुर्थ एकेन्द्रियशतक समाप्त॥ ३३॥ ४॥