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" [व्याख्याप्रज्ञप्तिसूत्र बन्ध कहा है। क्रियावादी आदि चारों में जीव और चौवीस दण्डकों की ग्यारह स्थानों द्वारा भव्याभव्यत्वप्ररूपणा
९४. किरियावादी णं भंते ! जीवा किं भवसिद्धीया, अभवसिद्धीया ? गोयमा ! भवसिद्धीया वि, अभवसिद्धीया वि। [९४ प्र.] भगवन् ! क्रियावादी जीव भवसिद्धिक हैं या अभवसिद्धिक हैं ? [९४ उ.] गौतम ! वे अभवसिद्धिक नहीं, भवसिद्धिक हैं। ९५. अकिरियावादी णं भंते ! जीवा किं भवसिद्धीया० पुच्छा। गोयमा ! भवसिद्धीया वि, भवसिद्धीया वि। [९५ प्र.] भगवन् ! अक्रियावादी जीव भवसिद्धिक हैं या अभवसिद्धिक हैं ? [९५ उ.] गौतम ! वे भवसिद्धिक भी हैं और अभवसिद्धिक भी। ९६. एवं अन्नाणियवादी वि, वेणइयवादी वि। [९६] इसी प्रकार अज्ञानवादी और विनयवादी जीवों के विषय में भी समझना चाहिए। ९७. सलेस्सा णं भंते ! जीवा किरियावादी किं भव० पुच्छा। गोयमा ! भवसिद्धीया, नो अभवसिद्धीया। [९७ प्र.] भगवन् ! सलेश्य क्रियावादी जीव भवसिद्धिक हैं या अभवसिद्धिक हैं ? [९७ उ.] गौतम ! वे भवसिद्धिक हैं, अभवसिद्धिक नहीं हैं। ९८. सलेस्सा णं भंते ! जीवा अकिरियावादी किं भव० पुच्छा। गोयमा ! भवसिद्धीया वि, अभवसिद्धीया वि। [९८ प्र.] भगवन् ! सलेश्य अक्रियावादी जीव भवसिद्धिक हैं या अभवसिद्धिक हैं ? [९८ उ.] गौतम ! वे भवसिद्धिक भी हैं और अभवसिद्धिक भी हैं। ९९. एवं अन्नाणियवादी वि, वेणइयवादी वि। [९९] इसी प्रकार अज्ञानवादी और विनयवादी भी (सलेश्यी के समान) जानना। १००. जहा सलेस्सा, एवं जाव सुक्कलेस्सा।
१. (क) भगवती. अ. वृत्ति, पत्र ९४७
(ख) भगवती. (हिन्दी-विवेचन) भा. ७, पृ. ३६२२