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तीसवाँ शतक : उद्देशक १]
[५९५ की वक्तव्यता कहनी चाहिए। विशेष यह है कि मनःपर्यवज्ञानी और नोसंज्ञोपयुक्त मनुष्यों का आयुष्यबन्धकथन सम्यग्दृष्टि तिर्यञ्चयोनिक के समान है।
९२. अलेस्सा, केवलनाणी, अवेदका, अकसायी, अजोगी य, एए न एगं पि आउयं पकरेंति जहा ओहिया जीवा, सेसं तहेव।
[९२] अलेश्यी, केवलज्ञानी, अवेदी, अकषायी और अयोगी, ये औधिक जीवों के समान किसी भी प्रकार का आयुष्यबन्ध नहीं करते। शेष सब पूर्ववत् है।
९३. वाणंमंतर-जोतिसिय-वेमाणिया जहा असुरकुमारा।
[९३] वाणव्यन्तर, ज्योतिष्क और वैमानिक जीवों का (आयुष्यबन्ध) कथन असुरकुमारों के समान जानना चाहिए।
विवेचन-क्रियावादी आदि नैरयिकों का आयुष्यबन्ध–नारकभव के स्वभाव के कारण क्रियावादी नैरयिक नरकायु और देवायु का बन्ध नहीं करते तथा क्रियावादी होने के कारण वे तिर्यञ्चायु भी नहीं बांधते। वे एकमात्र मनुष्यायु का बन्ध करते हैं। अक्रियावादी आदि तीनों समवसरणों के नैरयिक जीव सभी स्थानों में तिर्यञ्चायु और मनुष्यायु का बन्ध करते हैं । सम्यग्मिथ्यादृष्टि नैरयिक, अज्ञानवादी और विनयवादी ही होते हैं। वे सम्यग्मिथ्यादृष्टि (मिश्र) गुणस्थान में रहते हुए किसी भी प्रकार का आयुष्य नही बांधते, क्योंकि सम्यग्मिथ्यादृष्टि गुणस्थान का स्वभाव ही ऐसा है।
पृथ्वीकायिकों का तेजोलेश्या में आयुष्यबन्ध क्यों नहीं ? -पृथ्वीकायिक जीवों में अपर्याप्त अवस्था में इन्द्रियपर्याप्ति पूर्ण होने के पूर्व ही तेजोलेश्या होती है और वे इन्द्रियपर्याप्ति पूरी होने पर ही परभव का आयुष्य बांधते हैं । अतएव तेजोलेश्या के अभाव में ही उनके आयुष्य का बन्ध होता है, तेजोलेश्या के रहते नहीं। इसीलिए कहा गया है-"तेउलेस्साए न किं पि पकरेंति।"
द्वीन्द्रियादि जीवों में सम्यक्त्व और ज्ञान के रहते आयुष्यबन्ध क्यों नहीं? –द्वीन्द्रिय आदि जीवों में सास्वादन-सम्यक्त्व होने से उनमें सम्यक्त्व और अज्ञान तो होता है, किन्तु उनका काल अत्यल्प होने से उतने समय में आयुष्य का बन्ध संभव नहीं है। इसीलिए कहा गया है इनमें सम्यक्त्व और ज्ञान के रहते एक भी प्रकार का आयुष्यबन्ध नहीं होता। ___सम्यग्दृष्टि पंचेंन्द्रियतिर्यञ्च कब और कौन-सा आयुष्यबन्ध करते हैं ? -जब सम्यग्दृष्टि पंचेन्द्रियतिर्यञ्च कृष्ण आदि अशुभ लेश्या के परिणाम वाले होते हैं, तब किसी भी प्रकार के आयुष्य का बन्ध नहीं करते। जब वे तेजोलेश्यादिरूप शुभ परिणाम वाले होते हैं, तब एकमात्र वैमानिकदेव का आयुष्य बांधते हैं। इसीलिए कहा गया है कि सम्मदिट्ठी मणपज्जवनाणी तहेव वेमाणियाउयं पकरेंति।
तेजोलेश्यी जीवों का आयुष्यबन्ध-तेजोलेश्या वाले जीव के आयुष्य का बन्ध सलेश्य जीवों के . समान बताया है। इसका आशय यह है कि क्रियावादी केवल वैमानिक का आयुष्य बांधते हैं। शेष तीन समवसरण वाले जीव चारों प्रकार का आयुष्य बांधते हैं, क्योंकि सलेश्य जीव में इसी प्रकार के आयुष्य का