Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapati Sutra Part 04 Stahanakvasi
Author(s): Madhukarmuni
Publisher: Agam Prakashan Samiti
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बिइओ उद्देसओ : द्वितीय उद्देशक
चतुर्विधक्षुद्रयुग्म-कृष्णलेश्यी नैरयिकों के उपपात को लेकर विविध प्ररूपणा
१. कण्हलेस्सखुड्डागकडजुम्मनेरइया णं भंते ! कओ उववजंति ? ०
एवं चेव जहा ओहियगमो जाव नो परप्पयोगेण उववजंति, नवरं उववातो जहा वक्कंतीए धूमप्पभपुढविनेरइयाणं । सेसं तं चेव।
[१ प्र.] भगवन् ! क्षुद्रकृतयुग्म-राशिप्रमाण कृष्णलेश्यी नैरयिक कहाँ से आकर उत्पन्न होते हैं ?
[१ उ.] गौतम ! औधिकगम के अनुसार समझना चाहिए यावत् वे परप्रयोग से उत्पन्न नहीं होते। विशेष यह है कि धूमप्रभापृथ्वी के नैरयिकों का उपपात प्रज्ञापनासूत्र के छठे व्युत्क्रान्तिपद के अनुसार कहना चाहिए। शेष सब कथन (प्रश्न और उत्तर) पूर्ववत् जानना चाहिए।
२. धूमप्पभपुढविकण्हलेस्सखुड्डागकडजुम्मनेरइया णं भंते ! कओ उववजंति ? एवं चेव निरवसेसं।
[२ प्र.] भगवन् ! धूमप्रभापृथ्वी के क्षुद्रकृतयुग्म-राशिप्रमाण कृष्णलेश्यी नैरयिक कहाँ से आकर उत्पन्न होते हैं?
[२.उ.] गौतम ! इनके विषय में पूर्ववत् जानना। ३. एवं तमाए वि, अहेसत्तमाए वि, नवरं उववातो सव्वत्थ जहा वक्कंतीए।
[३] इसी प्रकार तमःप्रभा और अधःसप्तमपृथ्वी पर्यन्त कहना चाहिए। किन्तु उपपात सर्वत्र (सभी स्थानों में प्रज्ञापनासूत्र के छठे) व्युत्क्रान्तिपद के अनुसार जानना चाहिए।
४. कण्हलेस्सखुड्डागतेयोगनेरइया णं भंते ! कओ उववजंति ?
एवं चेव, नवरं तिन्नि वा, सत्त वा, एक्कारस वा, पण्णरस वा, संखेज्जा वा, असंखेजा वा। सेसं तं चेव।
[४ प्र.] भगवन् ! क्षुद्रत्र्योज-राशिप्रमाण धूमप्रभापृथ्वी के कृष्णलेश्यी नैरयिक कहाँ से आकर उत्पन्न होते हैं ?
__ [४ उ.] गौतम ! पूर्ववत् समझना चाहिए। विशेष यह है कि ये तीन, सात, ग्यारह, पन्द्रह, संख्यात या असंख्यात उत्पन्न होते हैं । शेष पूर्ववत् है।
५. एवं जाव अहेसत्तमाए वि। [५] इसी प्रकार यावत् अधःसप्तमपृथ्वी तक जानना चाहिए।