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[व्याख्याप्रज्ञप्तिसूत्र [४ प्र.] भगवन् ! रत्नप्रभापृथ्वी के क्षुद्रकृतयुग्म-राशिप्रमाण नैरयिक कहाँ से उद्वर्तित होकर तुरन्त कहाँ जाते हैं, कहाँ उत्पन्न होते हैं ?
[४ उ.] गौतम ! रत्नप्रभापृथ्वी के नैरयिक की उद्वर्तना के समान इनकी उद्वर्तना आदि जानना। ५. एवं जाव अहेसत्तमाए। [५] इसी प्रकार (शर्कराप्रभा के नैरयिक से लेकर) अधःसप्तमपृथ्वी तक उद्वर्त्तना जानना।
६. एवं खुड्डातेयोग खुड्डादावरजुम्म-खुड्डाकलियोग०, नवरं परिमाणं जाणियव्वं । सेसं तं चेव। सेवं भंते ! सेवं भंते ! त्ति।
॥ बत्तीसइमे सए : पढमो उद्देसओ समत्तो॥३१-१॥ [६] इस प्रकार क्षुद्रत्र्योज, क्षुद्रद्वापरयुग्म और क्षुद्रकल्योज के विषय में भी जानना चाहिए। परन्तु इनका परिमाण पूर्ववत् अपना-अपना पृथक्-पृथक् कहना चाहिए। शेष सब पूर्ववत् है।
_ 'हे भगवन् ! यह इसी प्रकार है, भगवन् ! यह इसी प्रकार है', यों कह कर गौतमस्वामी यावत् विचरते
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॥ बत्तीसवां शतक : प्रथम उद्देशक समाप्त॥
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