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________________ ६२२] [व्याख्याप्रज्ञप्तिसूत्र [४ प्र.] भगवन् ! रत्नप्रभापृथ्वी के क्षुद्रकृतयुग्म-राशिप्रमाण नैरयिक कहाँ से उद्वर्तित होकर तुरन्त कहाँ जाते हैं, कहाँ उत्पन्न होते हैं ? [४ उ.] गौतम ! रत्नप्रभापृथ्वी के नैरयिक की उद्वर्तना के समान इनकी उद्वर्तना आदि जानना। ५. एवं जाव अहेसत्तमाए। [५] इसी प्रकार (शर्कराप्रभा के नैरयिक से लेकर) अधःसप्तमपृथ्वी तक उद्वर्त्तना जानना। ६. एवं खुड्डातेयोग खुड्डादावरजुम्म-खुड्डाकलियोग०, नवरं परिमाणं जाणियव्वं । सेसं तं चेव। सेवं भंते ! सेवं भंते ! त्ति। ॥ बत्तीसइमे सए : पढमो उद्देसओ समत्तो॥३१-१॥ [६] इस प्रकार क्षुद्रत्र्योज, क्षुद्रद्वापरयुग्म और क्षुद्रकल्योज के विषय में भी जानना चाहिए। परन्तु इनका परिमाण पूर्ववत् अपना-अपना पृथक्-पृथक् कहना चाहिए। शेष सब पूर्ववत् है। _ 'हे भगवन् ! यह इसी प्रकार है, भगवन् ! यह इसी प्रकार है', यों कह कर गौतमस्वामी यावत् विचरते the ॥ बत्तीसवां शतक : प्रथम उद्देशक समाप्त॥ **
SR No.003445
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapati Sutra Part 04 Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1986
Total Pages914
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Metaphysics, & agam_bhagwati
File Size17 MB
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