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बत्तीसइमं सयं : उव्वट्टणा-सयं
बत्तीसवाँ : उद्वर्त्तना- शतक
पढमो उद्देसओ : प्रथम उद्देशक
चतुर्विध क्षुद्रयुग्म - नैरयिकों के उद्वर्त्तन को लेकर विविध प्ररूपणा
१. खुड्डाकडजुम्मनेरइया णं भंते ! अणंतरं उववट्टित्ता कहिं गच्छंति ? कहिं उववज्जंति ? किं नेरइएसु उववज्जंति ? किं तिरिक्खजोणिएसु उवव० ?
वट्टणा जहा वक्कंतीए ।
[१ प्र.] भगवन् ! क्षुद्रकृतयुग्म - राशिप्रमाण नैरयिक कहाँ से उद्वर्त्तित होकर (निकल — मर कर ) तुरन्त कहाँ जाते हैं और कहाँ उत्पन्न होते हैं ? क्या वे नैरयिकों में उत्पन्न होते हैं या तिर्यञ्चयोनिकों में उत्पन्न . होते हैं अथवा मनुष्यों में या देवों में उत्पन्न होते हैं ?
[१ 'उ.] गौतम ! इनका उद्वर्त्तन प्रज्ञापनासूत्र के छठे व्युत्क्रान्तिपद के अनुसार जानना।
२. ते णं भंते ! जीवा एगसमएणं केवतिया उव्वट्टंति ?
गोयमा ! चत्तारि वा, अट्ठ वा, बारस वा, सोलस वा, संखेज्जा वा, असंखेज्जा वा, उव्वट्टति ।
[२ प्र.] भगवन् ! वे जीव एक समय में कितने उद्वर्त्तित होते (मरते) हैं ?
[२ उ.] गौतम ! (वे एक समय में) चार, आठ, बारह, सोलह, संख्यात या असंख्यात उद्वर्त्तित होते
हैं ।
३. ते णं भंते ! जीवा कहं उववट्टंति ?
गोमा ! से जहानाम पवए०, एवं तहेव (स० २५ ३०८ सु० २-८ ) । एवं सो चेव गमओ जाव आयप्पयोगेणं उव्वट्टंति, नो परप्पयोगेणं उव्वट्टति ।
[३ प्र.] भगवन् ! वे जीव किस प्रकार उद्वर्त्तित होते हैं ?
[३.उ.] गौतम ! जैसे कोई कूदने वाला इत्यादि सब कथन पूर्ववत् (श. २५ उ. ८ सू. २-८) जानना; यावत् वे आत्मप्रयोग से उद्वर्त्तित होते हैं, परप्रयोग से उद्वर्त्तित नहीं होते हैं।
४. रयणप्पभापुढविखुड्डाकड० ?
एवं रयणप्पभाए वि ।