SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 752
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ [ ६२१ बत्तीसइमं सयं : उव्वट्टणा-सयं बत्तीसवाँ : उद्वर्त्तना- शतक पढमो उद्देसओ : प्रथम उद्देशक चतुर्विध क्षुद्रयुग्म - नैरयिकों के उद्वर्त्तन को लेकर विविध प्ररूपणा १. खुड्डाकडजुम्मनेरइया णं भंते ! अणंतरं उववट्टित्ता कहिं गच्छंति ? कहिं उववज्जंति ? किं नेरइएसु उववज्जंति ? किं तिरिक्खजोणिएसु उवव० ? वट्टणा जहा वक्कंतीए । [१ प्र.] भगवन् ! क्षुद्रकृतयुग्म - राशिप्रमाण नैरयिक कहाँ से उद्वर्त्तित होकर (निकल — मर कर ) तुरन्त कहाँ जाते हैं और कहाँ उत्पन्न होते हैं ? क्या वे नैरयिकों में उत्पन्न होते हैं या तिर्यञ्चयोनिकों में उत्पन्न . होते हैं अथवा मनुष्यों में या देवों में उत्पन्न होते हैं ? [१ 'उ.] गौतम ! इनका उद्वर्त्तन प्रज्ञापनासूत्र के छठे व्युत्क्रान्तिपद के अनुसार जानना। २. ते णं भंते ! जीवा एगसमएणं केवतिया उव्वट्टंति ? गोयमा ! चत्तारि वा, अट्ठ वा, बारस वा, सोलस वा, संखेज्जा वा, असंखेज्जा वा, उव्वट्टति । [२ प्र.] भगवन् ! वे जीव एक समय में कितने उद्वर्त्तित होते (मरते) हैं ? [२ उ.] गौतम ! (वे एक समय में) चार, आठ, बारह, सोलह, संख्यात या असंख्यात उद्वर्त्तित होते हैं । ३. ते णं भंते ! जीवा कहं उववट्टंति ? गोमा ! से जहानाम पवए०, एवं तहेव (स० २५ ३०८ सु० २-८ ) । एवं सो चेव गमओ जाव आयप्पयोगेणं उव्वट्टंति, नो परप्पयोगेणं उव्वट्टति । [३ प्र.] भगवन् ! वे जीव किस प्रकार उद्वर्त्तित होते हैं ? [३.उ.] गौतम ! जैसे कोई कूदने वाला इत्यादि सब कथन पूर्ववत् (श. २५ उ. ८ सू. २-८) जानना; यावत् वे आत्मप्रयोग से उद्वर्त्तित होते हैं, परप्रयोग से उद्वर्त्तित नहीं होते हैं। ४. रयणप्पभापुढविखुड्डाकड० ? एवं रयणप्पभाए वि ।
SR No.003445
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapati Sutra Part 04 Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1986
Total Pages914
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Metaphysics, & agam_bhagwati
File Size17 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy