SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 751
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ६२०] पंचवीसइमाइ-अट्ठावीसइम-पज्जंता उद्देसगा पच्चीसवें से लेकर अट्ठाईसवें उद्देशक तक शुक्लपाक्षिक नैरयिक सम्बन्धी चार उद्देशकों का अतिदेश १. सुक्कपक्खिएहिं एवं चेव चत्तारि उद्देसगा भाणियव्वा जाव–वालुयप्पभपुढविकाउलेस्ससुक्कपक्खिखुड्डाकलियोगनेरतिया णं भंते ! कतो उववजंति ? ० तहेव जाव नो परप्पयोगेणं उववजंति। सेवं भंते ! सेवं भंते ! त्ति। सव्वे वि एए अट्ठावीसं उद्देसगा। ॥ इक्कतीसइमे सए : पंचवीसइमाइ-अट्ठावीसइम-पजंता उद्देसगा समत्ता॥ ३१-२८॥ ॥इक्कतीसइमे उववायसयं समत्तं ॥ ३१॥ [१] इसी प्रकार शुक्लपाक्षिक के भी लेश्या-सहित चार उद्देशक कहने चाहिए। यावत् [प्र.] भगवन् ! बालुकाप्रभापृथ्वी के कापोतलेश्या वाले शुक्लपाक्षिक क्षुद्रकल्योजराशिप्रमाण नैरयिक कहाँ से आकर उत्पन्न होते हैं। [उ.] गौतम ! पूर्वकथनवत् समझना चाहिए। यावत् वे परप्रयोग से उत्पन्न नहीं होते। 'हे भगवन् ! यह इसी प्रकार है, भगवन् ! यह इसी प्रकार है', यों कह कर गौतमस्वामी यावत् विचरण करने लगे। ये सब मिला कर अट्ठाईस उद्देशक हुए। विवेचन—निष्कर्ष नौवें से लेकर अट्ठाईस उद्देशक तक चार-चार उद्देशकों का सम्मिलित निरूपण किया गया है। ॥ इकतीसवां शतक : पच्चीसवें से अट्ठाईसवें उद्देशक तक समाप्त॥ ॥ इकतीसवाँ : उपपातशतक सम्पूर्ण॥ ***
SR No.003445
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapati Sutra Part 04 Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1986
Total Pages914
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Metaphysics, & agam_bhagwati
File Size17 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy