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एगवीसमाइ-चउव्वीसइम-पजंता उद्देसगा
इक्कीसवें से चौवीसवें उद्देशक-पर्यन्त
कृष्णपाक्षिक नारक सम्बन्धी
१. एवं कण्हपक्खिएहि वि लेस्सासंजुत्ता चत्तारि उद्देसगा कायव्वा जहेव भवसिद्धीएहिं। सेवं भंते ! सेवं भंते ! त्तिः।
॥इक्कतीसइमे सए : एगवीसमाइ-चउव्वीसइमपज्जत्ता उद्देसगा समत्ता॥ [१] इसी प्रकार कृष्णपाक्षिक के लेश्याओं सहित चार उद्देशक भवसिद्धिकों के उद्देशकों के समान कहने चाहिए। . 'हे भगवन् ! यह इसी प्रकार है, भगवन् ! यह इसी प्रकार है', यों कह कर गौतमस्वामी यावत् विचरते
॥ इकतीसवाँ शतक : इक्कीसवें से चौवीसवें उद्देशक तक समाप्त।
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