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________________ ६१८] तेरसमाइ-सोलसम-पज्जंता उद्देसगा तेरहवें से सोलहवें उद्देशक पर्यन्त लेश्यायुक्त सम्यग्दृष्टि नारकों की वक्तव्यता के चार उद्देशक १. एवं सम्मदिट्ठीहि वि लेस्सासंजुत्तेहिं चत्तारि उद्देसगा कायव्वा, नवरं सम्मट्ठिी पढम-बितिएसु दोसु वि उद्देसएसु अहेसत्तमपुढवीए न उववातेयव्वो। सेसं तं चेव। सेवं भंते ! सेवं भंते ! त्ति। ॥इक्कतीसइमे सए : तेरसमाइ-सोलसमपज्जंता उद्देसगा समत्ता॥ [१] इसी प्रकार लेश्या सहित सम्यग्दृष्टि के चार उद्देशक कहने चाहिए। विशेष यह है कि सम्यग्दृष्टि का प्रथम और द्वितीय, इन दो उद्देशकों में कथन है। पहले और दूसरे उद्देशक में अधःसप्तमनरकपृथ्वी में सम्यग्दृष्टि का उपपात नहीं कहना चाहिए। 'हे भगवन् ! यह इसी प्रकार है, भगवन् ! यह इसी प्रकार है', यों कहकर गौतमस्वामी यावत् विचरते ॥इकतीसवाँ शतक : तेरहवें से सोलहवें उद्देशक तक समाप्त 4 %% सत्तरसमाइ-वीसइम-पज्जंता उद्देसगा सत्रहवें से लेकर वीसवें उद्देशक तक मिथ्यादृष्टि नारक सम्बन्धी चार उद्देशक १. मिच्छादिट्ठीहि वि चत्तारि उद्देसगा कायव्वा जहा भवसिद्धीयाणं। सेवं भंते ! सेवं भंते ! त्ति। ॥ इक्कतीसइमे सए : सत्तरसमाइ-वीसइम-पजंता उद्देसगा समत्ता॥ [१] मिथ्यादृष्टि के भी भवसिद्धिकों के समान चार उद्देशक कहने चाहिए। 'हे भगवन् ! यह इसी प्रकार है, भगवन् ! यह इसी प्रकार है', यों कह कर गौतमस्वामी यावत् विचरते हैं। ॥इकतीसवाँ शतक : सत्रहवें से वीसवें उद्देशक तक समाप्त॥ ***
SR No.003445
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapati Sutra Part 04 Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1986
Total Pages914
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Metaphysics, & agam_bhagwati
File Size17 MB
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