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________________ [ ६१७ अट्ठमो उद्देसओ : आठवाँ उद्देशक चतुर्विध क्षुद्रयुग्म - कापोतलेश्यी भवसिद्धिक नैरयिकों की उपपात -सम्बन्धी प्ररूपणा १. काउलेस्सभवसिद्धीय० चउसु वि जुम्मेसु तहेव उववातेयव्वा जहेव ओहिए काउलेस्स उद्देसए । सेवं भंते! सेवं भंते! जाव विहरति । ॥ इक्कतीसइमे सए : अट्ठमो उद्देसओ समत्तो ॥ [१] कापोतलेश्यी भवसिद्धिक नैरयिक के चारों ही युग्मों का कथन औधिक नीललेश्या - सम्बन्धी उद्देशक के अनुसार कहना चाहिए । 'हे भगवन् ! यह इसी प्रकार है, भगवन् ! यह इसी प्रकार है', यों कहकर गौतमस्वामी यावत् विचरते हैं । ॥ इकतीसवाँ शतक : आठवाँ उद्देशक समाप्त ॥ नवमाइ-बारसम-पज्जंता उद्देसगा नौवें से बारहवें उद्देशक तक भव्यनैरयिकों के समान अभव्यनैरयिकों सम्बन्धी वक्तव्यता १. जहा भवसिद्धीएहिं चत्तारि उद्देसगा भणिया एवं अभवसिद्धीएहि वि चत्तारि उद्देसगा भाणिव्वा जाव काउलेस्सउद्देसओ त्ति । सेवं भंते ! सेव भंते ! त्ति० । ॥ इक्कतीसइमे सए : नवमाइ-बारसम-पज्जंता उद्देसगा समत्ता ॥ [१] जिस प्रकार भवसिद्धिक-सम्बन्धी चार उद्देशक कहे, उसी प्रकार अभवसिद्धिक-सम्बन्धी चारों उद्देशक कापोतलेश्या-सम्बन्धी उद्देशकों तक कहने चाहिए। 'हे भगवन् ! यह इसी प्रकार है, भगवन् ! यह इसी प्रकार है', यों कह कर गौतमस्वामी यावत् विचरते हैं । ॥ इकतीसवाँ शतक : नौवें से बारहवें उद्देशक तक सम्पर्ण ॥ ***
SR No.003445
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapati Sutra Part 04 Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1986
Total Pages914
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Metaphysics, & agam_bhagwati
File Size17 MB
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