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सत्तमो उद्देसओ : सप्तम उद्देशक
चतुर्विध क्षुद्रयुग्म - नीललेश्यी भवसिद्धिक नैरयिकों की उपपात -सम्बन्धी प्ररूपणा १. नीललेस्सभवसिद्धीय० चउसु वि जुम्मेसु तहेव भाणियव्वा जहा ओहियनीललेस्सउद्देसए । सेवं भंते! सेवं भंते ! जाव विहरति ।
॥ इक्कतीसइमे सए : सत्तमो उद्देसओ समत्तो ॥ ३१-७॥
[१] नीललेश्या वाले भवसिद्धिक नैरयिक के चारों युग्मों का कथन औघिक नीललेश्या सम्बन्धी उद्देशक के अनुसार समझना चाहिए।
'हे भगवन् ! यह इसी प्रकार है, भगवन् ! यह इसी प्रकार है', यों कह कर गौतमस्वामी यावत् विचरते
हैं।
॥ इकतीसवाँ शतक : सातवाँ उद्देशक समाप्त ॥
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