Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapati Sutra Part 04 Stahanakvasi
Author(s): Madhukarmuni
Publisher: Agam Prakashan Samiti
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पंचवीसइमाइ-अट्ठावीसइम-पज्जंता उद्देसगा
पच्चीसवें से लेकर अट्ठाईसवें उद्देशक तक
शुक्लपाक्षिक नैरयिक सम्बन्धी चार उद्देशकों का अतिदेश
१. सुक्कपक्खिएहिं एवं चेव चत्तारि उद्देसगा भाणियव्वा जाव–वालुयप्पभपुढविकाउलेस्ससुक्कपक्खिखुड्डाकलियोगनेरतिया णं भंते ! कतो उववजंति ? ०
तहेव जाव नो परप्पयोगेणं उववजंति। सेवं भंते ! सेवं भंते ! त्ति। सव्वे वि एए अट्ठावीसं उद्देसगा। ॥ इक्कतीसइमे सए : पंचवीसइमाइ-अट्ठावीसइम-पजंता उद्देसगा समत्ता॥ ३१-२८॥
॥इक्कतीसइमे उववायसयं समत्तं ॥ ३१॥ [१] इसी प्रकार शुक्लपाक्षिक के भी लेश्या-सहित चार उद्देशक कहने चाहिए। यावत्
[प्र.] भगवन् ! बालुकाप्रभापृथ्वी के कापोतलेश्या वाले शुक्लपाक्षिक क्षुद्रकल्योजराशिप्रमाण नैरयिक कहाँ से आकर उत्पन्न होते हैं।
[उ.] गौतम ! पूर्वकथनवत् समझना चाहिए। यावत् वे परप्रयोग से उत्पन्न नहीं होते।
'हे भगवन् ! यह इसी प्रकार है, भगवन् ! यह इसी प्रकार है', यों कह कर गौतमस्वामी यावत् विचरण करने लगे।
ये सब मिला कर अट्ठाईस उद्देशक हुए।
विवेचन—निष्कर्ष नौवें से लेकर अट्ठाईस उद्देशक तक चार-चार उद्देशकों का सम्मिलित निरूपण किया गया है।
॥ इकतीसवां शतक : पच्चीसवें से अट्ठाईसवें उद्देशक तक समाप्त॥
॥ इकतीसवाँ : उपपातशतक सम्पूर्ण॥
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