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तीसवाँ शतक : उद्देशक १]
[१००] कृष्णलेश्यी से लेकर शुक्ललेश्यी पर्यन्त सलेश्य के समान जानना । १०१ अलेस्सा णं भंते ! जीवा किरियावादी किं भव० पुच्छा ।
गोयमा ! भवसिद्धीया, नो अभवसिद्धीया ।
[१०१ प्र.] भगवन् ! अलेश्यी क्रियावादी जीव भवसिद्धिक हैं या अभवसिद्धिक हैं ?
[१०१ उ.] गौतम ! वे भवसिद्धिक हैं, अभवसिद्धिक नहीं ।
१०२. एवं एएणं अभिलावेणं कण्हपक्खिया तिसु वि समोसरणेसु भयणाए ।
[१०२] इस अभिलाप से कृष्णपाक्षिक तीनों समवसरणों (अक्रियावादी, अज्ञानवादी और विनयवादी) में भजना (विकल्प) से भवसिद्धिक हैं ।
१०३. सुक्कपक्खिया चतुसु वि समोसरणेसु भवसिद्धीया, नो अभवसिद्धीया ।
[१०३] शुक्लपाक्षिक जीव चारों समवसरणों में भवसिद्धिक हैं, अभवसिद्धिक नहीं हैं। १०४. सम्मद्दिट्टी जहा अलेस्सा।
[१०४] सम्यग्दृष्टि अलेश्यी जीवों के समान हैं।
१०५. मिच्छद्दिट्टी जहा कण्हपक्खिया ।
[१०५] मिथ्यादृष्टि जीव कृष्णपाक्षिक के सदृश हैं।
१०६. सम्मामिच्छद्दिट्ठी दोसु वि समोसरणेसु जहा अलेस्सा।
[१०६] सम्यग्मिथ्यादृष्टि जीव अज्ञानवादी और विनयवादी, इन दोनों समवसरणों में अलेश्यी जीवों समान भवसिद्धिक हैं ।
१०७. नाणी जाव केवलनाणी भवसिद्धीया, नो अभवसिद्धीया ।
[१०७] ज्ञानी से लेकर केवलज्ञानी तक भवसिद्धिक हैं, अभवसिद्धिक नहीं।
१०८. अन्नाणी जाव विभंगनाणी जहा कण्हपक्खिया ।
[१०८] अज्ञानी से लेकर विभंगज्ञानी तक कृष्णपाक्षिकों के सदृश हैं।
१०९. सणासु चउसु वि जहा सलेस्सा।
[१०९] चारों संज्ञाओं से युक्त जीवों का कथन सलेश्य जीवों के समान है।
११०. नोसण्णोवउत्ता जहा सम्मद्दिट्ठी ।
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[११०] नोसंज्ञोपयुक्त जीवों का कथन सम्यग्दृष्टि के समान है।
१११. सवेयगा जाव नपुंसगवेयगा जहा सलेस्सा।