Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapati Sutra Part 04 Stahanakvasi
Author(s): Madhukarmuni
Publisher: Agam Prakashan Samiti
View full book text
________________
छव्वीसवाँ शतक : उद्देशक - १]
[ ५४१
[८० प्र.] भगवन् ! तेजोलेश्यी पृथ्वीकायिक जीव ने आयुष्यकर्म बांधा था ? इत्यादि प्रश्न ।
[८० उ.] गौतम ! (तेजोलेश्यी पृथ्वीकायिक ने) बांधा था, बांधता नहीं है और बांधेगा, यह केवल तृतीय भंग पाया जाता है।
८१. सेसेसु सव्वेसु चत्तारि भंगा।
[८१] शेष सभी स्थानों में चार-चार भंग कहने चाहिए।
-८२. एवं आउकाइय-वणस्सइकाइयाण वि निरवसेसं ।
[८२] इसी प्रकार अप्कायिक और वनस्पतिकायिक जीवों के विषय में भी सब कहना चाहिए।
८३. तेउकाइय-वाउकाइयाणं सव्वत्थ वि पढम - ततिया भंगा।
[८३] तेजस्कायिक और वायुकायिक जीवों के सभी स्थानों में प्रथम और तृतीय भंग होते हैं।
८४. बेइंदिय-तेइंदिय- चउरिंदियाणं पि सव्वत्थ वि पढम-ततिया भंगा, नवरं सम्मत्ते नाणे आभिणिबोहियनाणे सुयनाणे ततियो भंगो ।
1
[८४] द्वीन्द्रिय, त्रीन्द्रिय और चतुरिन्द्रिय जीवों के सभी स्थानों में प्रथम और तृतीय भंग होते हैं।
विशेष यह है कि इनके सम्यक्त्व, ज्ञान, आभिनिबोधिकज्ञान और श्रुतज्ञान में एकमात्र तृतीय भंग होता
८५. पंचेन्द्रियतिरिक्खजोणियाणं कण्हपक्खिए पढम - ततिया भंगा। सम्मामिच्छत्ते ततियचउत्था भंगा। सम्मत्ते नाणे आभिणिबोहियनाणे सुयनाणे ओहिनाणे, एएसु पंचसु वि पएसु बितियावहूणा भंगा। सेसेसु चत्तारि भंगा।
[८५] पंचेन्द्रियतिर्यञ्चयोनिक में तथा कृष्णपाक्षिक में प्रथम और तृतीय भंग पाये जाते हैं।
सम्यग्मिथ्यादृष्टि जीव में तृतीय और चतुर्थ भंग होते हैं । सम्यक्त्व, ज्ञान, आभिनिबोधिकज्ञान, श्रुतज्ञान एवं अवधिज्ञान, इन पांचों पदों में द्वितीय भंग को छोड़कर शेष तीन भंग पाये जाते हैं। शेष सभी पूर्ववत् (चार भंग) जानना ।
८६. मणुस्साणं जहा जीवाणं, नवरं सम्मत्ते, ओहिए नाणे, आभिनिबोहियनाणे, सुयनाणे, ओहिनाणे, एएसु बितियविहूणा भंगा; सेसं तं चेव ।
औधिक ज्ञान,
[८६] मनुष्यों का कथन औधिक जीवों के समान जानना । किन्तु इनके सम्यक्त्व, आभिनिबोधिकज्ञान, श्रुतज्ञान और अवधिज्ञान, इन पदों में द्वितीय भंग को छोड़ कर शेष तीन भंग पाये जाते हैं । शेष सब पूर्ववत् जानना ।