Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapati Sutra Part 04 Stahanakvasi
Author(s): Madhukarmuni
Publisher: Agam Prakashan Samiti
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[व्याख्याप्रज्ञप्तिसूत्र [२१] साकारोपयुक्त और अनाकारोपयुक्त जीव, सलेश्य जीवों के तुल्य हैं।
विवेचन-क्रियावादी आदि चारों में से कौन क्या है ?—क्रियावादी का अर्थ सम्यग्दृष्टि होने से यहाँ उन्हें अलेश्य जीवों के समान बताया है। अलेश्य जीव अयोगी (मन-वचन-काया के योगों से रहित) एवं सिद्ध होता है। वे क्रियावाद के कारणभूत द्रव्य और पर्याय के यथार्थ ज्ञान से युक्त होने से क्रियावादी हैं । यही कारण है कि सम्यग्दृष्टि के योग्य अलेश्य, सम्यग्दृष्टि, ज्ञानी यावत् केवलज्ञानी, नोसंज्ञोपयुक्त, अवेदी, अकषायी
और अयोगी को यहाँ क्रियावादी कहा है तथा मिथ्यादृष्टि के योग्य कृष्णपाक्षिक, मिथ्यादृष्टि, अज्ञानी, यावत् विभंगज्ञानी आदि स्थानों का अक्रियावाद आदि तीन समवसरणों में समावेश किया गया है । मिश्रदृष्टि साधारण परिणाम वाला, होने से उसकी गणना न तो क्रियावादी (आस्तिक) में होती है और न ही अक्रियावादी (नास्तिक) में, किन्तु वे अज्ञानवादी और विनयवादी ही होते हैं। इनके अतिरिक्त शेष सबकी गणना (मिश्रदृष्टि वाले को छोड़ कर) तीनों समवसरणों में होती है। चोवीस दण्डकों में ग्यारह स्थानों द्वारा क्रियावादादिसमवसरण-प्ररूपणा
२२. नेरइया णं भंते ! किं किरियावादी० पुच्छा। गोयमा ! किरियावादी वि जाव वेणइयवादी वि। [२२ प्र.] भगवन् ! नैरयिक क्रियावादी हैं ? इत्यादि पूर्ववत् प्रश्न। [२२ उ.] गौतम ! वे क्रियावादी भी, अक्रियावादी, अज्ञानवादी और विनयवादी भी होते हैं। २३. सलेस्सा णं भंते ! नेरइया किं किरियावादी०? एवं चेव। [२३ प्र.] भगवन् ! सलेश्य नैरयिक क्रियावादी होते हैं ? इत्यादि पूर्ववत् समग्र प्रश्न । [२३ उ.] गौतम ! वे क्रियावादी भी यावत् विनयवादी भी हैं। २४. एवं जाव काउलेस्सा। [२४] इसी प्रकार कापोतलेश्य नैरयिकों तक पूर्ववत् जानना चाहिए। २५. कण्हपक्खिया किरियाविवजिया। [२५] कृष्णपाक्षिक नैरयिक क्रियावादी नहीं हैं।
२६. एवं एएणं कमेणं जहेव जच्चेव जीवाण वत्तव्वया सच्चेव नेरइयाण वि जाव अणागारोवउत्ता, नवरं जं अत्थि तं भाणियव्वं, सेसं न भण्णति।
[२६] इसी प्रकार और इसी क्रम से जिस प्रकार सामान्य जीवों के सम्बन्ध में वक्तव्यता कही है, उसी
१. (क) भगवती. अ. वृत्ति, पत्र ९४४
(ख) भगवती. (हिन्दी विवेचन) भा. ९. पृ. ३६०९