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[व्याख्याप्रज्ञप्तिसूत्र [२] जइ देवाउयं पकरेंतिः । तहेव।
[४०-२ प्र.] भगवन् ! यदि वे (तेजोलेश्यी क्रियावादी जीव) देवायुष्य बांधते हैं तो क्या भवनवासीदेवायुष्य बांधते हैं, यावत् वैमानिक देवायुष्य बांधते हैं ? ।
[४०-२ उ.] पूर्ववत् आयुष्यबन्ध करते हैं। . ४१. तेउलेस्सा णं भंते ! जीवा अकिरियावादी किं नेरइयाउयं० पुच्छा।
गोयमा ! नो नेरतियाउयं पकरेंति, तिरिक्खजोणियाउयं पि पकरेंति, मणुस्साउयं पि पकरेंति, देवाउयं पि पकरेंति।
[४१ प्र.] भगवन् ! तेजोलेश्यी अक्रियावादी जीव नैरयिकायुष्य बांधते हैं ? इत्यादि पूर्ववत् प्रश्न।
[४१ उ.] गौतम ! वे नैरयिकायुष्य नहीं बांधते, किन्तु तिर्यञ्चायुष्य बांधते हैं, मनुष्यायुष्य और देवायुष्य भी बांधते हैं।
४२. एवं अन्नाणियवाई वि, वेणइयवादी वि। [४२] इसी प्रकार अज्ञानवादी और विनयवादी के आयुष्य-बन्ध के विषय में जानना चाहिए। ४३. जहा तेउलेस्सा एवं पम्हलेस्सा वि, सुक्कलेस्सा वि नेयव्वा।
[४३] जिस प्रकार तेजोलेश्यी के आयुष्य-बन्ध का कथन किया, उसी प्रकार पद्मलेश्यी और शुक्ललेश्यी के आयुष्यबन्ध के विषय में जानना चाहिए।
४४. अलेस्सा णं भंते ! जीवा किरियावादी किं रतियाउयं० पुच्छा। गोयमा ! नो नेरतियाउयं पकरेंति, नो तिरि०, नो मणु० देवाउयं पकरेंति। [४४ प्र.] भगवन् ! अलेश्यी क्रियावादी जीव नैरयिकायुष्य बांधते हैं ? इत्यादि पूर्ववत् प्रश्न। [४४ उ.] गौतम ! नैरयिक, तिर्यञ्च, मनुष्य और देव, किसी का आयुष्य नहीं बांधते। ४५. कण्हपक्खिया णं भंते ! जीवा अकिरियावाई किं नेरतियाउयं० पुच्छा। गोयमा ! नेरइयाउयं पि पकरेंति, एवं चउव्विहं पि। [४५ प्र.] भगवन् ! कृष्णपाक्षिक अक्रियावादी जीव नैरयिकायुष्य बांधते हैं ? इत्यादि पूर्ववत् प्रश्न । [४५ उ.] गौतम ! वे नैरयिक, तिर्यञ्च आदि चारों प्रकार का आयुष्य बांधते हैं। ४६. एवं अण्णाणियवादी वि, वेणइयवादी वि।
[४६] इसी प्रकार कृष्णपाक्षिक अज्ञानवादी और विनयवादी जीवों के आयुष्यबन्ध के विषय में जानना चाहिए।