Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapati Sutra Part 04 Stahanakvasi
Author(s): Madhukarmuni
Publisher: Agam Prakashan Samiti
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तीसवां शतक : उद्देशक १] .
[५८५ प्रकार और उसी क्रम से यहाँ भी अनाकारोपयुक्त तक वक्तव्यता कहनी चाहिए। विशेष यह है कि जिसके जो हो, वही कहना चाहिए, शेष (न हो उसे) नहीं कहना चाहिए।
२७. जहा नेरतिया एवं जाव थणियकुमारा। [२७] जिस प्रकार नैरयिकों का कथन किया है, उसी प्रकार स्तनितकुमार पर्यन्त कथन करना चाहिए। २८. पुढविकाइया णं भंते ! किं किरियावादी० पुच्छा।
गोयमा ! नो किरियावादी, अकिरियावादी वि अन्नाणियवादी वि, वेणइयवादी। एवं पुढविकाइयाणं जं अत्थि तत्थ सव्वत्थ वि एयाइं दो मझिल्लाइं समोसरणाई जाव अणागारोवउत्त त्ति।
[२८ प्र.] भगवन् ! क्या पृथ्वीकायिक क्रियावादी होते हैं ? इत्यादि पूर्ववत् प्रश्न।
[२८ उ.] गौतम ! वे क्रियावादी नहीं हैं, वे अक्रियावदी भी हैं, अज्ञानवादी भी हैं, किन्तु वे विनयवादी नहीं हैं। .
इसी प्रकार पृथ्वीकायिक आदि जीवों में जो पद संभवित हो, उन सभी पदों में (इन चारों में से) जो दो मध्यम समवसरण (अक्रियावादी और अज्ञानवादी) हैं, ये ही अनाकारोपयुक्त पृथ्वीकायिक पर्यन्त होते हैं।
२९. एवं जाव चउरिदियाणं, सव्वट्ठाणेसु एयाइं चेव मझिल्लगाइं दो समोसरणाइं। सम्मत्तनाणेहि वि एयाणि चेव मझिल्लगाई दो समोसरणाई।
[२९] इसी प्रकार चतुरिन्द्रिय जीवों तक सभी पदों में मध्य के दो समवसरण होते हैं। इनके सम्यक्त्व और ज्ञान में भी ये दो मध्यम समवसरण जानने चाहिए।
३०. पंचेंदियतिरिक्खजोणिया जहा जीवा, नवरं जं अस्थि तं भाणियव्वं । _[३०] पञ्चेन्द्रियतिर्यञ्चयोनिक जीवों का कथन औधिक जीवों के समान है, किन्तु इनमें भी जिसके जो पद हों, वे कहने चाहिए।
३१. मणुस्सा जहा जीवा तहेव निरवसेसं। [३१] मनुष्यों का समग्र कथन औधिक जीवों के सदृश है। ३२. वाणमंतर-जोतिसिय-वेमाणिया जहा असुरकुंमारा। [३२] वाणव्यन्तर, ज्योतिष्क और वैमानिक जीवों का कथन असुरकुमारों के समान जानना चाहिए।
विवेचन—स्पष्टीकरण-(१) पृथ्वीकायिक आदि जीव मिथ्यादृष्टि होने से वे अक्रियावादी और अज्ञानवादी होते हैं । यद्यपि उनमें वचन (वाणी) का अभाव होने से वाद नहीं होता, तथापि उस-उस वाद के योग्य परिणाम होने से वे अक्रियावादी और अज्ञानवादी कहे गए हैं। उनमें विनयवाद के योग्य परिणाम न होने से वे विनयवादी नहीं होते।
(२) पृथ्वीकायिकादि के योग्य सलेश्यत्व, कृष्णलेश्या, नीललेश्या, कापोतलेश्या और तेजोलेश्या तथा