________________
४७४]
[व्याख्याप्रज्ञप्तिसूत्र [१३५] इसी प्रकार का कथन परिहारविशुद्धिकसंयत पर्यन्त जानना चाहिए। १३६. सुहुमसंपराए अहक्खाए य जहा पुलाए (उ० ६ सु० १७३)। [ दारं २५]।
[१३६] सूक्ष्मसम्परायसंयत और यथाख्यातसंयत का कथन (उ. ६, सू. १७३ में उक्त) पुलाक के समान जानना चाहिए। [पच्चीसवाँ द्वार] छव्वीसवाँ आहारद्वार : पंचविध संयतों में आहारक-अनाहारक-प्ररूपणा
१३७. सामाइयसंजए णं भंते! किं आहारए होजा? जहा पुलाए (उ०६ सु० १७८)। [१३७ प्र.] भगवन् ! सामायिकसंयत आहारक होता है या अनाहारक होता है ? [१३७ उ.] गौतम! इसके विषय में (उ.६, सू. १७८ में उक्त) पुलाक के समान जानना। १३८. एवं जाव सुहुमसंपराए। [१३८] इसी प्रकार सूक्ष्मसम्परायसंयत तक जानना। १३९. अहक्खाए जहा सिणाए ( उ०६ सु० १८०)। [दारं २६ ]
[१३९] यथाख्यातसंयत का कथन (उ.६, सू. १८० में कथित) स्नातक के समान जानना। [छव्वीसवाँ द्वार] सत्ताईसवाँ भवग्रहणद्वार
१४०. सामाइयसंजए णं भंते! कति भवग्गहणाई होजा? गोयमा! जहन्नेणं एक्कं, उक्कोसेणं अट्ठ।
[१४० प्र.] भगवन् ! सामायिकसंयत कितने भव ग्रहण करता है ? (अर्थात् कितने भवों में सामायिकसंयम आता है ?)
[१४० उ.] गौतम! वह जघन्य एक भव और उत्कृष्ट आठ भव ग्रहण करता है। १४१. एवं छेदोवट्ठावणिए वि। [१४१] इसी प्रकार छेदोपस्थापनीयसंयत के विषय में भी जानना। १४२. परिहारविसुद्धिए० पुच्छा। गोयमा! जहन्नेणं एक्कं, उक्कोसेणं तिन्नि। [१४२ प्र.] भगवन् ! परिहारविशुद्धिकसंयत कितने भव ग्रहण करता है ? [१४२ उ.] गौतम! वह जघन्य एक और उत्कृष्ट तीन भव ग्रहण करता है। १४३. एवं जाव अहक्खाते।[दार २७] [१४३] इसी प्रकार सावत् यथाख्यातसंयत तक कहना चाहिए। [सत्ताईसवाँ द्वार]