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एगारसमो उद्देसओ : 'सम्म' ग्यारहवाँ उद्देशक : सम्यग्दृष्टि की उत्पत्ति
चौवीस दण्डकगत सम्यग्दृष्टि जीवों की उत्पत्ति का अतिदेशपूर्वक निरूपण
[१] सम्मदिट्ठिनेरइया णं भंते ! कहं उववजंति ? गोयमा ! जहानामए पवए पवमाणे०, अवसेसं तं चेव। [२] एगिंदियवजं जाव वेमाणिया। सेवं भंते ! सेवं भंते ! त्ति।
- ॥पंचवीसइमे सते : एगारसमो उद्देसओ समत्तो॥२५-११॥ [१ प्र.] भगवन् ! सम्यग्दृष्टि नैरयिक किस प्रकार उत्पन्न होते हैं ? इत्यादि प्रश्न । _ [१ उ.] गौतम ! जैसे कोई कूदने वाला पुरुष कूदता हुआ ....... इत्यादि अवशिष्ट (समस्त वर्णन) एकेन्द्रिय को छोड़कर वैमानिक पर्यन्त कहना चाहिए।
'हे भगवन् ! यह इसी प्रकार है, भगवन् ! यह इसी प्रकार है', यों कह कर गौतमस्वामी यावत् विचरते हैं। ॥ पच्चीसवां शतक : ग्यारहवाँ उद्देशक सम्पूर्ण॥
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