Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapati Sutra Part 04 Stahanakvasi
Author(s): Madhukarmuni
Publisher: Agam Prakashan Samiti
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पच्चीसवाँ शतक : उद्देशक-७],
[५०१
अरहंतपन्नत्तस्स धम्मस्स अणच्चासायणया २ आयरियाणं अणच्चासायणया ३ उवज्झायाणं अणच्चासायणया ४ थेराणं अणच्चासायणया ५ कुलस्स अणच्चासायणया ६ गणस्स अणच्चासायणया ७ संघस्स अणच्चासायणया ८ किरियाए अणच्चासायणया ९ संभोगस्स अणच्चासायणया,१० आभिणिबोहियनाणस्स अणच्चासायणया ११ जाव केवलनाणस्स अणच्चासायणया १२-१३-१४-१५, एएसिं चेव भत्तिबहुमाणे णं १५ एएसिं चेव वण्णसंजलणया १५,८४५ । से तं अणच्चासायणाविणए। सं त्तं दंसणविणए।
[२२३ प्र.] (भगवन् !) अनाशातनाविनय कितने प्रकार का है ?
[२२३ उ.] (गौतम!) अनाशातनाविनय पैंतालीस प्रकार का कहा है। यथा—(१) अरिहन्तों की अनाशातना, (२) अरिहन्तप्रज्ञप्त धर्म की अनाशातना, (३) आचार्यों की अनाशातना, (४) उपाध्यायों की अनाशातना, (५) स्थविरों की अनाशातना, (६) कुल की अनाशातना, (७) गण की अनाशातना, (८) संघ की अनाशातना, (९) क्रिया की अनाशातना, (१०) साम्भोगिक (साधर्मिक साधु-साध्वीगण) की अनाशातना, (११ से १५ तक) आभिनिबोधिकज्ञान से लेकर केवलज्ञान तक की अनाशातना। इन पन्द्रह की (१) भक्ति करना, (२) बहुमान करना और (३) इनका गुण-कीर्तन करना, इस प्रकार कुल १५४३-४५ भेद अनाशातनाविनय के हुए। यह हुआ अनाशातनाविनय का वर्णन । साथ ही दर्शनविनय का वर्णन भी पूर्ण हुआ।
२२४. से किं तं चरित्तविणए ?
चरित्तविणए पंचविधे पन्नत्ते, तं जहा—सामाइयचरित्तविणए जाव अहक्खायचरित्तविणए। से तं चरित्तविणए।
[२२४ प्र.] (भगवन् !) चारित्रविनय कितने प्रकार का है ?
[२२४ उ.] (गौतम!) चारित्रविनय पांच प्रकार का है। यथा—सामायिकचारित्रविनय (से लेकर) यावत् यथाख्यातचारित्रविनय। इस प्रकार चारित्रविनय का वर्णन हुआ।
२२५. से किं तं मणविणए ? मणविणए दुविहे पन्नत्ते, तं जहा—पसत्थमणविणए व अप्पसत्थमणविणए य। [२२५ प्र.] वह मनोविनय कितने प्रकार का है ? [२२५ उ.] मनोविनय दो प्रकार का कहा है। यथा—प्रशस्तमनोविनय और अप्रशस्तमनोविनय । २२६. से किं तं पसत्थमणविणए?
पसत्थमणविणए सत्तविधे पन्नत्ते, तं जहा–अपावए, असावजे, अकिरिय, निरुवक्केसे, अणण्हयकरे, अच्छविकरे, अभूयाभिसंकणे। से तं पसत्थमणविणए।
[२२६ प्र.] वह प्रशस्तमनोविनय कितने प्रकार का है ?.
[२२६ उ.] प्रशस्तमनोविनय सात प्रकार का बताया गया है। यथा—(१) अपापक (पापरहित), (२) अनावद्य (क्रोधादि सावद्य-पापों से रहित), (३) अक्रिय (कायिकी आदि क्रियाओं से रहित), (४)