Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapati Sutra Part 04 Stahanakvasi
Author(s): Madhukarmuni
Publisher: Agam Prakashan Samiti
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[व्याख्याप्रज्ञप्तिसूत्र और प्रायश्चित्त लेने वाले के जातिसम्पन्नत्ता, कुलसम्पन्नता आदि दस गुण, इस प्रकार कुल मिलाकर प्रायश्चित्त सम्बन्धी पचास बोल होते हैं। विनय तप के भेदों-प्रभेदों का निरूपण
२१९. से किं तं विणए ?
विणए सत्तविधे पन्नत्ते, तं जहा—नाणविणए १ दंसणविणए २ चरित्तविणए ३ मणविणए ४ वउविणए ५ कायविणए ६ लोगोवयारविणए ७।
[२१९ प्र.] (भगवन् !) विनय कितने प्रकार का है ?
[२१९ उ.] (गौतम!) विनय सात प्रकार का कहा है। यथा—(१) ज्ञानविनय, (२) दर्शनविनय, (३) चारित्रविनय, (४) मनविनय, (५) वचनविनय, (६) कायविनय और (७) लोकोपचार विनय।
२२०. से किं तं नाणविणए ?
नाणविणए पंचविधे पन्नत्ते, तं जहा–आभिनिबोहियनाणविणए जाव केवलनाणविणए। से तं नाणविणए। _ [२२० प्र.] (भगवन् ! ) ज्ञानविनय कितने प्रकार का है ?
[२२० उ.] (गौतम ! ) ज्ञानविनय पाँच प्रकार का कहा है। यथा--आभिनिबोधिकज्ञानविनय यावत् केवलज्ञानविनय। यह है ज्ञानविनय ।
२२१. से किं तं दंसणविणए ? दसणविणए दुविधे पन्नत्ते, तं जहा—सुस्सूसणाविणए य अणच्चासायणाविणए य। [२२१ प्र.] (भगवन्!) दर्शनविनय कितने प्रकार का है ? . [२२१ उ.] (गौतम!) दर्शनविनय दो प्रकार का कहा है। यथा—शुश्रूषाविनय और अनाशातनाविनय । २२२. से किं तं सुस्सूसणाविणए ?
सुस्सूसणाविणए अणेगविधे पन्नत्ते, तं जहा—सक्कारेति वा सम्माणेति वा जहा चोद्दसमसए ततिए उहेसए ( स० १४ उ० ३ सु० ४) जाव पडिसंसाहणया। से त्तं सुस्सूसणाविणए।
[२२२ प्र.] (भगवन्!) शुश्रूषाविनय कितने प्रकार का है ?
[२२२ उ.] (गौतम!) शुश्रूषाविनय अनेक प्रकार का कहा है। यथा—सत्कार, सम्मान इत्यादि सब वर्णन चौदहवें शतक के तीसरे उद्देशक (के सूत्र ४) के अनुसार यावत् प्रतिसंसाधनता तक जानना चाहिए।
२२३. से किं तं अणच्चासादणाविणए ? अणच्चासादणाविणए पणयालिसतिविधे पन्नत्ते, तं जहा–अरहंताणं अणच्चासायणया,
१. भगवती. (हिन्दी-विवेचन) भा.७, पृ. ३५०८