Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapati Sutra Part 04 Stahanakvasi
Author(s): Madhukarmuni
Publisher: Agam Prakashan Samiti
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[ व्याख्याप्रज्ञप्तिसूत्र नौवां लिंगद्वार : पंचविध संयतों में स्व-अन्य-गृहिलिंग-प्ररूपणा
४६. सामाइयसंजए णं भंते ! किं सलिंगे होज्जा, अन्नलिंगे होज्जा, गिहिलिंगे होजा ? जहा पुलाए ( उ० ६ सु० ५८)।
[४६ प्र.] भगवन् ! सामायिकसंयत स्वलिंग में होता है, अन्य लिंग में या गृहस्थलिंग में होता है ? [४६ उ.] गौतम ! इसका सभी कथन (उ. ६, सू. ४८ में उक्त) पुलाक के समान जानना।. ४७. एवं छेदोवट्ठावणिए वि। [४७] इसी प्रकार छेदोपस्थापनीयसंयत के विषय में भी जानना चाहिए। ४८. परिहारविसुद्धियसंजए णं भंते ! किं० पुच्छा।
गोयमा ! दव्वलिंगं पि भावलिंगं पि पडुच्च सलिंगे होजा, नो अन्नलिंगे होज्जा, नो गिहिलिंगे होजा।
[४८ प्र.] भगवन् ! परिहारविशुद्धिकसंयत स्वलिंग में होता है ? इत्यादि पूर्ववत् प्रश्न ।
[४८ उ.] गौतम! वह द्रव्यलिंग और भावलिंग की अपेक्षा स्वलिंग में होता है, अन्यलिंग या गृहस्थलिंग में नहीं होता।
४९. सेसा जहा सामाइयसंजए।[ दारं ९]।
[४९] शेष (सूक्ष्मसम्पराय और यथाख्यात संयत का) कथन सामायिकसंयत के समान जानना चाहिए। [नौवाँ द्वार]
विवेचन–समायिकसंयत, सूक्ष्मसम्पराय और यथाख्यात संयत सम्बन्धी लिंग-विषयक प्रश्न में पुलाक का अतिदेश किया गया है, परिहारविशुद्धिकसंयत द्रव्य-भावलिंग की अपेक्षा स्वलिंग में ही होता है। दसवाँ शरीरद्वार : पंचविध संयतों में शरीरभेद-प्ररूपणा
५०. सामाइयसंजए णं भंते ! कतिसु सरीरेसु होज्जा ? गोयमा ! तिसु वा चतुसु वा पंचसु वा जहा कसायकुसीले ( उ० ६ सु० ६३)। [५० प्र.] भगवन् ! सामायिकसंयत कितने शरीरों में होता है? .
[५० उ.] गौतम ! वह तीन, चार या पांच शरीरों में होता है, इत्यादि सब कथन (उ.६, सू. ६३ में उक्त) कषायकुशील के समान जानना चाहिए।
५१. एवं छेदोवट्ठावणिए वि। [५१] इसी प्रकार छेदोपस्थापनीयसंयत के विषय में भी जानना चाहिए। ५२. सेसा जहा पुलाए ( उ० ६ सु०६०)। [ दारं १०] [५२] शेष परिहारविशुद्धिक, सूक्ष्मसम्पराय और यथाख्यात संयत का शरीर-विषयक कथन (उ. ६