Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapati Sutra Part 04 Stahanakvasi
Author(s): Madhukarmuni
Publisher: Agam Prakashan Samiti
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पच्चीसवाँ शतक : उद्देशक - ७]
सू. ६० में कथित ) पुलाक के समान जानना । [दसवाँ द्वार ]
ग्यारहवाँ क्षेत्रद्वार : पंचविध संयतों में कर्म-अकर्मभूमि की प्ररूपणा ५३. सामाइयसंजए णं भंते! किं कम्मभूमीए होज्जा, अकम्मभूमीए होज्जा ? गोयमा ! जम्मणं संतिभावं च पडुच्च जहा बउसे ( उ० ६ सु० ६६ )।
[५३ प्र.] भगवन् ! सामायिकसंयत कर्मभूमि में होता है या अकर्मभूमि में ?
[ ४५७
[५३ उ.] गौतम ! जन्म और सद्भाव की अपेक्षा से ( वह कर्मभूमि में होता है, अकर्मभूमि में नहीं, इत्यदि सब कथन उ. ६, सू. ६६ में कथित ) बकुश के समान जानना चाहिए ।
५४. एवं छेदोवट्ठावणिए वि ।
[५४] इसी प्रकार छेदोपस्थापनीयसंयत का कथन है
'
५५. परिहारविशुद्धिए य जहा पुलाए (उ० ६ सु ६५ ) ।
[५५] परिहारविशुद्धिकसंयत के विषय में (उ. ६, सू. ६५ में उक्त) पुलाक के समान जानना ।
५६. सेसा जहा सामाइयसंजए। [ दारं ११ ] ।
[५६] शेष (सूक्ष्मसम्पराय और यथाख्यात संयत ) के विषय में सामायिकसंयत के समान जानना। [ग्यारहवाँ 'द्वार]
बारहवाँ कालद्वार : पंचविध संयतों में अवसर्पिणीकालादि की प्ररूपणा
५७. सामाइयसंजए णं भंते! किं ओसप्पिणिकाले होज्जा, उस्सप्पिणिकाले होज्जा, नोओसप्पिणिनोउस्सप्पिणिकाले होज्जा ?
गोयमा ! ओसप्पिणिकाले जहा बउसे (उ० ६ सु० ६९ ) ।
[५७ प्र.] भगवन् ! सामायिकसंयत अवसर्पिणीकाल में होता है, उत्सर्पिणीकाल में होता है, या नो अवसर्पिणी- नोउत्सर्पिणीकाल में होता है ?
[५७ उ ] गौतम ! वह अवसर्पिणीकाल में होता है, इत्यादि सब कंथन (उ. ६ सू. ३९ में उक्त) कुश के समान हैं।
५८. एवं छेदोवट्ठावणिए वि, नवरं जम्मण-संतिभावं पडुच्च चउसु वि पलिभागेसु नत्थि, साहरणं पडुच्च अन्नयरे पलिभागे होज्जा। सेसं तं चेव ।
[५८] इसी प्रकार छेदोपस्थापनीयसंयत के विषय में भी समझना चाहिए। विशेष यह है कि जन्म और सद्भाव की अपेक्षा चारों पलिभागों (सुषम - सुषमा, सुषमा, सुषम- दुःषमा और दु:षम - सुषमा) में नहीं होता, संहरण की अपेक्षा किसी भी पलिभाग में होता है। शेष पूर्ववत् है ।
५९. [ १ ] परिहारविसुद्धिए० पुच्छा ।
गोयमा ! ओसप्पिणिकाले वा होज्जा, उस्सप्पिणिकाले वा होज्जा, नोओसप्पिणिनोउस्स