Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapati Sutra Part 04 Stahanakvasi
Author(s): Madhukarmuni
Publisher: Agam Prakashan Samiti
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४६२]
[ व्याख्याप्रज्ञप्तिसूत्र
हैं, किन्तु यथाख्यातसंयत का संयमस्थान तो एक ही होता है । संयमस्थान के अल्पबहुत्व का स्पष्टीकरण इस प्रकार है—
असद्भावस्थापन से सभी संयमस्थान यदि २१ मान लिये जाएँ तो उनमें से सर्वोपरि जो एक है, वह यथाख्यातसंयत का संयमस्थान है। उसके पश्चात् सूक्ष्मसम्परायसंयत के ४ संयमस्थान हैं। वे उस एक की अपेक्षा असंख्येयगुणे समझने चाहिए। तदनन्तर परिहारविशुद्धिकसंयत के संयमस्थान ८ हैं । वे पहले वाले से असंख्यातगुणे समझने चाहिए। उसके बाद आते हैं सामाजिक और छेदोपस्थापनीय संयत के संयमस्थान, वे चार-चार समझने चाहिए, जो परस्पर तुल्य हैं और पूर्व से असंख्येयगुणे हैं। पन्द्रहवाँ निष्कर्ष ( चारित्रपर्यव ) द्वार : चारित्रपर्यव - प्ररूपणा
८०. सामाइयसंजयस्स णं भंते ! केवतिया चरित्तपज्जवा पन्नत्ता ? गोयमा ! अणंता चरित्तपज्जवा पन्नत्ता ।
[८० प्र.] भगवन् ! सामायिकसंयत के चारित्रपर्यव कितने कहे हैं ?
[८० उ. ] गौतम ! उसके अनन्त चारित्रपर्यव कहे हैं ।
८१. एवं जाव अहक्खायसंजयस्स ।
[८१] इसी प्रकार यथाख्यातसंयत तक के चारित्रपर्यव के विषय में जानना चाहिए।
पंचविधसंयतों में स्वस्थान - परस्थान - चारित्रपर्यवों की अपेक्षा हीन- तुल्य-अधिक प्ररूपणा ८२. सामाइयसंजए णं भंते! सामाइयसंजयस्स सट्टाणसन्निगासेणं चरित्तपज्जवेहिं किं हीणे, तुल्ले, अब्भहिए ?
गोयमा ! सिय हीणे०, छट्टाणवडिए ।
[८२ प्र.] भगवन् ! एक सामायिकसंयत, दूसरे सामायिकसंयत के स्वस्थानसन्निकर्ष (सजातीय चारित्रवर्यवों) की अपेक्षा क्या हीन होता है, तुल्य होता है अथवा अधिक होता है ?
[८२ उ.] गौतम ! वह कदांचित् हीन, कदाचित् तुल्य और कदाचित् अधिक होता है। वह हीनाधिकता में षट्स्थानपतित होता है ।
८३. सामाइयसंजए णं भंते ! छेदोवट्ठावणियसंजयस्स पराट्ठाणसन्निगासेणं चरित्तपज्जवेहिं०
पुच्छा।
गोयमा ! सिय हीणे०, छट्ठाणवडिए ।
[ ८३ प्र.] भगवन् ! सामायिकसंयत, छेदोपस्थानीयसंयत के परस्थानसन्निकर्ष (विजातीय चारित्रपर्यवों) की अपेक्षा क्या हीन, तुल्य या अधिक होता है ?
[८३ उ.] गौतम ! वह भी कदाचित् तुल्य और कदाचित् अधिक होता है । वह भी हीनाधिकता में
१. भगवती. अ. वृत्ति, पत्र ९१३