Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapati Sutra Part 04 Stahanakvasi
Author(s): Madhukarmuni
Publisher: Agam Prakashan Samiti
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सत्तमो उद्देसओ : 'समणा'
सप्तम उद्देशक : श्रमण' (संयत सम्बन्धी) प्रथम प्रज्ञापनाद्वार : संयतों के भेद-प्रभेद का निरूपण
१. कति णं भंते ! संजया पन्नत्ता?
गोयमा ! पंच संजया पन्नत्ता तं जहा—सामाइयसंजए छेदोवट्ठावणियसंजए परिहारविसुद्धियसंजए सुहुमसंपरायसंजए अहक्खायसंजए।
[१ प्र.] भगवन् ! संयत कितने प्रकार के कहे हैं ?
[१ उ.] गौतम ! संयत पांच प्रकार के कहे हैं। यथा—(१) सामायिक संयत, (२) छेदोपस्थापनिक संयत, (३) परिहारविशुद्धि-संयत, (४) सूक्ष्म सम्पराय-संयत और (५) यथाख्यात-संयत।
२. सामाइयसंजए णं भंते ! कतिविधे पन्नत्ते ? गोयमा ! दुविहे पन्नत्ते, तं जहा—इत्तिरिए य, आवकहिए य। [२ प्र.] भगवन् ! सामायिक-संयत कितने प्रकार का कहा है? [२ उ.] गौतम ! वह दो प्रकार का कहा गया है। यथा इत्वरिक और यावत्कथिक। ३. छेदोवट्ठावणियसंजए णं० पुच्छा। गोयमा ! दुविहे पन्नत्ते, तं जहा—सातियारे य, निरतियारे य। [३ प्र.] भगवन् ! छेदोपस्थापनिक-संयत कितने प्रकार का कहा गया है? [३ उ.] गौतम ! वह दो प्रकार का कहा गया है। यथा-सातिचार और निरतिचार। ४. परिहारविसुद्धियसंजए० पुच्छा।। गोयमा ! दुविहे पन्नत्ते, तं जहा—णिव्विसमाणए य, निविट्ठकाइए य। [४ प्र.] भगवन् ! परिहारविशुद्धिक-संयत कितने प्रकार का कहा गया है? [४ उ.] गौतम! वह दो प्रकार का कहा गया है। यथा—निर्विशमानक और निर्विष्टकायिक। ५. सुहुमसंपराग० पुच्छा। गोयमा ! दुविहे पन्नत्ते, तं जहा—संकिलिस्समाणए य, विसुज्झमाणए य। [५ प्र.] भगवन् ! सूक्ष्मसम्पराय-संयत कितने प्रकार का कहा गया है? [५ उ.] गौतम ! वह दो प्रकार का कहा है। यथा संक्लिश्यमानक और विशुद्ध्यमानक। ६. अहक्खायसंजए० पुच्छा। गोयमा ! दुविहे पन्नत्ते, तं जहा—छउमत्थे य, केवली य।